तबले में कितने घरानें हैl प्रत्येक घरानें पर प्रकाश डालिएl
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Explanation:
भारतीय संगीत में प्रयोग होने वाला एक तालवाद्य है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई देशों में बहुत प्रचलित है।[1] यह लकड़ी के दो ऊर्ध्वमुखी, बेलनाकार, चमड़ा मढ़े मुँह वाले हिस्सों के रूप में होता है, जिन्हें रख कर बजाये जाने की परंपरा के अनुसार "दायाँ" और "बायाँ" कहते हैं। यह तालवाद्य हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में काफी महत्वपूर्ण है और अठारहवीं सदी के बाद से इसका प्रयोग शास्त्रीय एवं उप शास्त्रीय गायन-वादन में लगभग अनिवार्य रूप से हो रहा है। इसके अतिरिक्त सुगम संगीत और हिंदी सिनेमा में भी इसका प्रयोग प्रमुखता से हुआ है। यह बाजा भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, और श्री लंका में प्रचलित है।[2] पहले यह गायन-वादन-नृत्य इत्यादि में ताल देने के लिए सहयोगी वाद्य के रूप में ही बजाय जाता था, परन्तु बाद में कई तबला वादकों ने इसे एकल वादन का माध्यम बनाया और काफी प्रसिद्धि भी अर्जित की।
Explanation:
तबला वादन के कुल छह घराने हैं:
दिल्ली घराना
लखनऊ घराना
फर्रुखाबाद घराना
अजराड़ा घराना
बनारस घराना
पंजाब घराना
दिल्ली घराने के प्रवर्तक उस्ताद सुधार ख़ाँ थे और पंजाब घराने के अलावा बाकी के चार अन्य घराने भी दिल्ली घराने का ही विस्तार माने जाते हैं। लखनऊ घराने के प्रवर्तक मोदू ख़ाँ और बख़्शू ख़ाँ; फ़र्रूख़ाबाद घराने के प्रवर्तक विलायत अली ख़ाँ उर्फ़ हाजी साहब; अजराड़ा घराने के प्रवर्तक कल्लू ख़ाँ और मीरू ख़ाँ; बनारस घराने के प्रवर्तक पंडित राम सहाय और पंजाब घराने के प्रवर्तक उस्ताद फ़क़ीरबख़्श ख़ाँ थे।