तजि अंगार अघात' से क्या तात्पर्य है?
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अंगार अघात,' तजि अंगार न अघात' भी पाठ है उसका भी यही अर्थ होता है, अर्थात अंगार को छोड़कर दूसरी चीजों से उसे तृप्ति नहीं होती। ... उसका भी यही अर्थ है। शब्दार्थ :- `अंगार अघात,' =अंगारों से तृप्त होता है , प्रवाद है कि चकोर पक्षी अंगार चबा जाता है। कोरि =छेदकर।
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जिससे जिसका मन लगा होता है, उसे वहीं सुहाता है। चकोर पक्षी के बारे में कहा जाता है कि वह या तो चन्द्रमा की किरणों को चुगता है या फिर अंगारों की चिंगारियों से पेट भरता है। उसे कोई सुगंधित और शीतल कपूर देता है तो उसे त्यागकर अंगारों से ही अपनी भूख शांत करता है। इसी प्रकार गोपियों का कहना है कि उनका मन श्रीकृष्ण के प्रेम बंधन में बंधा है। वे उन्हें त्यागकर योग को नहीं अपना सकतीं। कृष्ण जैसे भी हैं उन्हें वहीं प्रिय लगते हैं।