तजि तीरथ, हरि-राधिका-तन-दुति करि अनुरागु।
जिहि ब्रज-केलि-निकुंज-मग पग पग होत प्रयागु ।।
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ब्रज-केलि = ब्रजमण्डल की लीलाएँ। निकुंज-मग = कुंजों के बीच का रास्ता। प्रयोग = तीर्थराज। निकुंज = लताओं के आपस में मिलकर तन जाने से उनके नीचे जो रिक्त स्थान बन जाते हैं, उन्हें निकुंज वा कुंज कहते हैं, लता-वितान।
Explanation:
तीर्थों में भटकना छोड़कर उन श्रीकृष्ण और राधिका के शरीर की छटा से प्रेम करो, जिनकी ब्रज में की गई क्रीड़ाओं से कुंजों के रास्ते पग-पग में प्रयाग बन जाते हैं - प्रयाग के समान पवित्र और पुण्यदायक हो जाते हैं।
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