तकनीकी प्रणाली को संस्कृत में क्या बोलते हैं
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संस्कृत विद्वानों की भाषा, पंडितों की भाषा, ऐसे ही कुछ नामों से संस्कृत को अलंकृत किया जाता है, और वर्तमान में तो इसे साम्प्रदायिकों की भाषा भी कहा जाने लगा है। धर्म विशेष से जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है। पिछले दिनों विदेश दौरों पर जब प्रधानमंत्री का स्वागत संस्कृत के श्लोकों के साथ किया गया तो हमारे देश के प्रधानमंत्री की पीड़ा भी झलक पड़ी उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, “यदि ऐसा कुछ भारत में होता तो विरोध के सुर गूंजने लगते”। संस्कृत भाषा को लेकर ये तो एक परिदृश्य है जो देश के भीतर चल रहा है, किन्तु इससे इतर आज भारतीय संस्कृत समाज के भीतर एक नया स्वरुप गढा जा रहा है जिसे वैश्विक पटल पर नयी पहचान एवं प्रशस्ति प्राप्त हो रही है । संस्कृत अब अपनी सीमाओं की बाढ़ को तोड़कर तेजी से तकनीक से जुड़ रही है । संस्कृत के विद्वान अब पांडित्य के साथ तकनीक की बात कर रहे हैं, नए सॉफ्टवेयर विकसित करने पर बात कर रहे है ।
इन दिनों राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान के गंगानाथ झा परिसर इलाहबाद में “पाणिनीय व्याकरण एवं संस्कृत कम्प्युटेशनल लिंग्विस्टिक” विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है । इस कार्यशाला के माध्यम से एक अद्भुत प्रतिभा निकल कर सामने आती दिखाई पड़ती है, जो कंप्यूटर की बात करती है, प्रोग्रामिंग, सॉफ्टवेयर टूल्स, मॉडर्न लिंग्विस्टिक की बात करती है । मूलतः इनका केंद्र तो पाणिनीय व्याकरण ही है जिसे न केवल भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व स्वीकार कर रहा है, इस कार्यशाला के संयोजक एवं व्याकरण विभागाध्यक्ष ललितकुमार त्रिपाठी जी से चर्चा करने पर ज्ञात हुआ कि संस्कृत कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान आज विश्व की समस्त भाषा के संगणकीय विज्ञान के लिए एक सशक्त आधारशिला है ।