टकरायेगा नहीं आज उद्धत लहरों से, कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुंचाएगा 2 अब तक धरती अचल रही पैरों के नीचे के नीचे सागर लहराएगा। गर्त शिखर बन उठे लिए मैवरों का मेला, हुए पिघल ज्योतिष्क तिमिर की निश्चल बेला, तू मोती के द्वीप स्वप्न रहा खोजता में तब तो बहता समय शिला सा जम जाएगा। तुझसे हो यदि अग्नि-स्नात यह प्रलय महोत्सव कौन प्यार फिर तुझे दिवस तक पहुँचायेगा ? • फूलों की दे ओट सुरभि के घेरे खाँचे पहुँचेगा पथी दूसरे तट पर उस दिन धूल पोंछ काटे मत गिन छाले मत राहला. मत ठण्डे संकल्प आँसुओं से तू बहला तभी मरण का स्वस्ति-गान जीवन गाएगा टकरायेगा नहीं आज उम्मद लहरों से Page 3 of 8 (क) प्रस्तुत पदयांश का क्या उद्देश्य प्रतीत होता है ? (0) आत्मविश्वास जगाने हेतु द्रष्टांत प्रस्तुति करना (ii) प्रत्येक परिस्थिति कार्य करने की प्रेरणा देना (ii) जागृति व उत्साहित करने हेतु प्रेरणा देना (iv) जीवन दर्शन के विषय में प्रोत्साहन देना (ख) तू मोती के द्वीप स्वप्न में रहा खोजता प्रस्तुत पंक्ति का क्या भाव है ? (i) भांतियों के समान आँसुओं को स्वप्न में आने वाले सुंदर द्वीपों पर नष्ट नहीं करना चाहिए माती के द्वीप खोजने के लिए सागर में दूर-दूर जाकर काटदायी विचरण करना (iii) जीवन संसाधनों के लिए यथार्थ में रहकर प्रयत्न करना होगा होगा (iv) यदि ऐसा होगा तो जीवन शिला-सा जम जाएगा (ग) तुझसे हो यदि अग्नि-स्नात प्रस्तुत पंक्ति का क्या अर्थ है ? (i) यदि तुम जीवन की कष्टतम परिस्थिति झेल लोगे, तो जीवन तुम्हारे बलिदान की प्रशंसा करेगा (ii) यदि तुम आग के दरिया डूबकर जाने को तैयार हो तो जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो सकोगे (iii) जीवन प्रलय के महोत्सव में आग लगाने वाला ही सफलतम वीर कहलाएगा (iv) यदि तुम जीवन में बलिदान करोगे तो जग सदा तुम्हारे जीवन की सराहना करेगा
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I am Sorry brother i don't know the answer
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