Hindi, asked by aarav2689, 1 year ago

Taking care of elder people stories in hindi

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Answered by saikowsik33p5ywfs
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लाला गुरु प्रसाद स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ते हुए काफी हांफ रहे थे। 70 साल की उम्र में जवानी का जोश आखिर कहां से आए! बहू-बेटे से गुस्सा होकर घर से निकले थे। आज उन्होंने खाना भी नहीं खाया था। अपने जीवन की सारी पूंजी बेटे को दे दी, यह सोच कर कि एक दिन बेटा ही उनके बुढ़ापे की लाठी बनेगा। शुरुआत में तो सुबोध उनका काफी ख्याल रखता था, पर जब से उसकी शादी हुई, वह कुछ बदल-सा गया था। परिवार की जिम्मेदारियों के बीच वह बूढ़े बाप का पहले जैसा ध्यान नहीं रख पाता था। आए दिन किसी न किसी बात को लेकर बाप-बेटे में बहस हो ही जाती थी।

पर आज तो हद ही हो गई! लालाजी ने जब सुबोध से अपने कुछ खर्चे के लिए पैसे मांगे, तो सुबोध बोला- “पिताजी आपका क्या है? आप तो घर में पड़े रहते हैं। जानते हैं कितनी महंगाई है? मेरी तनख्वाह भी इतनी नहीं कि मैं आपके ऊपर जरूरत से ज्यादा पैसे खर्च कर सकूं। और मुझे अपने भविष्य के बारे में भी सोचना है। अगर आपको गवारा लगे तो आप हमारे साथ रह सकते हैं, अन्यथा जहां जाना चाहें, जा सकते हैं। आपकी मर्जी।”

बेटे के मुंह से यह बात सुनकर लालाजी स्तब्ध रह गए। क्या इसी दिन के लिए अपनी सारी जमा पूंजी बेटे की नौकरी के लिए दी थी? अपमानित होकर जीने से तो अच्छा है कि कहीं बाहर जाकर रहें। कम से कम बेटे की सुननी तो नहीं पड़ेगी। यही सोचकर लालाजी बिना खाए-पिए घर से निकलकर प्लेटफार्म पर आ चुके थे। गुस्से में वो घर से निकल तो पड़े थे मगर कहां जाएं, ये अभी तक तय नहीं कर पाए थे।

ठंड ज्यादा थी। लालाजी के हाथ-पैर कांप रहे थे, तभी पीछे से खर-खर की आवाज आई। एक भिखारी प्लास्टिक ओढ़ कर खुद को ठंड से बचाने की कोशिश में लगा हुआ था। लालाजी उसे गौर से देखने लगे, तभी उधर से गुजर रहे कुली ने लालाजी से कहा, “क्या देख रहे हो बाबूजी? ये पिछले कई सालों से यहां पड़ा है। उम्र के इस पड़ाव पर अगर परिवार साथ है, तो ठीक। वरना ऐसे ही दर-दर ठोकरें खानी पड़ती हैं।”

लालाजी के कानों में कुली की आवाज गूंजने लगी। आखिरकार लालाजी जिन सीढ़ियों से स्टेशन आए थे, उन्हीं से धीरे-धीरे वापस लौटने लगे। शायद उन्होंने समय और हालात से समझौता कर लिया था!
Answered by Coolronak
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here is your story :-

लाला गुरु प्रसाद स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ते हुए काफी हांफ रहे थे। 70 साल की उम्र में जवानी का जोश आखिर कहां से आए! बहू-बेटे से गुस्सा होकर घर से निकले थे। आज उन्होंने खाना भी नहीं खाया था। अपने जीवन की सारी पूंजी बेटे को दे दी, यह सोच कर कि एक दिन बेटा ही उनके बुढ़ापे की लाठी बनेगा। शुरुआत में तो सुबोध उनका काफी ख्याल रखता था, पर जब से उसकी शादी हुई, वह कुछ बदल-सा गया था। परिवार की जिम्मेदारियों के बीच वह बूढ़े बाप का पहले जैसा ध्यान नहीं रख पाता था। आए दिन किसी न किसी बात को लेकर बाप-बेटे में बहस हो ही जाती थी।

पर आज तो हद ही हो गई! लालाजी ने जब सुबोध से अपने कुछ खर्चे के लिए पैसे मांगे, तो सुबोध बोला- “पिताजी आपका क्या है? आप तो घर में पड़े रहते हैं। जानते हैं कितनी महंगाई है? मेरी तनख्वाह भी इतनी नहीं कि मैं आपके ऊपर जरूरत से ज्यादा पैसे खर्च कर सकूं। और मुझे अपने भविष्य के बारे में भी सोचना है। अगर आपको गवारा लगे तो आप हमारे साथ रह सकते हैं, अन्यथा जहां जाना चाहें, जा सकते हैं। आपकी मर्जी।”

बेटे के मुंह से यह बात सुनकर लालाजी स्तब्ध रह गए। क्या इसी दिन के लिए अपनी सारी जमा पूंजी बेटे की नौकरी के लिए दी थी? अपमानित होकर जीने से तो अच्छा है कि कहीं बाहर जाकर रहें। कम से कम बेटे की सुननी तो नहीं पड़ेगी। यही सोचकर लालाजी बिना खाए-पिए घर से निकलकर प्लेटफार्म पर आ चुके थे। गुस्से में वो घर से निकल तो पड़े थे मगर कहां जाएं, ये अभी तक तय नहीं कर पाए थे।

ठंड ज्यादा थी। लालाजी के हाथ-पैर कांप रहे थे, तभी पीछे से खर-खर की आवाज आई। एक भिखारी प्लास्टिक ओढ़ कर खुद को ठंड से बचाने की कोशिश में लगा हुआ था। लालाजी उसे गौर से देखने लगे, तभी उधर से गुजर रहे कुली ने लालाजी से कहा, “क्या देख रहे हो बाबूजी? ये पिछले कई सालों से यहां पड़ा है। उम्र के इस पड़ाव पर अगर परिवार साथ है, तो ठीक। वरना ऐसे ही दर-दर ठोकरें खानी पड़ती हैं।”

लालाजी के कानों में कुली की आवाज गूंजने लगी। आखिरकार लालाजी जिन सीढ़ियों से स्टेशन आए थे, उन्हीं से धीरे-धीरे वापस लौटने लगे। शायद उन्होंने समय और हालात से समझौता कर लिया था

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