तमिल में 'बोगी कोटू' कहते हैं। 'बोगी' ऋतुओं के राजा इंद्र को समर्पित है। इंद्र नई ऋतुओं के आगमन की
घोषणा करते हैं।
गोपाल की दादी माँ ने चावल के आटे से फ़र्श पर बहुत सुंदर-सुंदर आकृतियाँ बनाईं। गोपाल ने दादी से पूछा,
“दादी यह क्या है?'' दादी ने उसे प्यार से बताया कि इसे 'कोलम्' कहते हैं। यह 'कोलम्' नई फसल के चावल
से बनाया जाता है इसलिए इसका विशेष महत्त्व है। अगले दिन सुबह गोपाल नहा-धोकर, नए कपड़े पहनकर तैयार
हो गया। उसने देखा कि द्वार के ठीक बाहर बहुत बड़ा और बहुत सुंदर 'कोलम्' बना था। पोंगल पर विशेष रूप
से सूर्य की ही पूजा-अर्चना की जाती है। कुछ देर बाद गोपाल को रसोईघर से भीनी-भीनी सुगंध आने लगी। चूल्हे
पर नए बर्तन में 'शर्करइ पोंगल' पकाया जा रहा था। यह 'शर्करइ पोंगल' दूध, गुड़ और चावल से बनाया जाता है।
सूर्य की पूजा करने के बाद गोपाल ने बड़े चाव से 'शर्करइ पोंगल' खाया।
दादी माँ ने उसे बताया कि तमिलनाडु के लोग हल्दी को बड़ा पवित्र मानते हैं। हल्दी और धान की फसल एक
साथ निकलती है। इस अवसर पर अन्न-भंडार भरे रहते हैं, प्रकृति की शोभा देखते ही बनती है। गोपाल को बचपन
के गली-कूचों में डोलते बैलों की याद हो आई। दादाजी ने बताया कि वे अगले दिन 'माटु पोंगल' पर दिखाई देंगे
स दिन पशुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है। 'पोंगल' खेती-बाड़ी का त्योहार है। किसानों से संबंध होने के
रण इस दिन बैलों को भी सजाया जाता है। अगले दिन गोपाल ने बैलगाड़ियों की दौड़ का भी भरपूर मज़ा लिय
इस प्रकार गोपाल का भारत आगमन सार्थक हुआ। उसने इस त्योहार का हृदय से आनंद उठाया। उसने पिता
कि वह ये दिन कभी नहीं भूलेगा। पिता ने स्नेहपूर्वक कहा, "हाँ बेटे! ये त्योहार खुशियाँ बाँटते हैं और
दूसरे के निकट लाते हैं। हमारा भारत त्योहारों का ही देश है।"
समर्पित-आदरपूर्वक भेंट करना; आगमन-आना; कृतज्ञता-आभार; सार्थक-सफल
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