तने का महत्त्व लिखिए
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तना पौधे का वह भाग है जो कि भूमि एवं जल के विपरीत तथा प्रकाश (Light) की ओर वृद्धि करता है। यह प्रांकुर (Plumule) से विकसित होता है और शाखाओं, पतियों, फूल एवं फल धारण करता है।
तने की विशेषताएं (Characteristics of stem):
- तना पौधे का आरोही भाग है, जो भूमि के विपरीत प्रकाश की ओर गति करता है। (Negatively geotropic but positively phototropic).
- तने की अग्र सिरे पर कलिकाएँ (Buds) पायी जाती हैं, जिनसे तना वृद्धि करता है।
- तने पर शाखाएँ (Branches) तथा पत्तियाँ लगेती हैं।
- तने का आकार बेलनाकार, चपटा अथवा कोणीय (Angular) होता है।
- तने के प्रकार: भूमि की स्थिति के अनुसार तना तीन प्रकार के होते हैं। ये हैं-
भूमिगत तना (Underground stem): पौधे के तने का वह भाग जो भूमि के अंदर पाया जाता है, भूमिगत तना कहलाता है। भूमिगत तने में पर्व सन्धियाँ, पर्ण कलिकाएँ तथा शल्क पत्र पाये जाते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भूमिगत तने भोजन संग्रह करने के कारण मोटा एवं मांसल हो जाता है। जैसे- हल्दी, अदरक, केला, फर्न, आलू, प्याज, लहसुन, कचालू, जिमीकन्द, अरबी आदि।
भूमिगत तने का रूपान्तरण (Modifications of underground stem): प्रतिकूल परिस्थितियों में भूमिगत तने भोजन संग्रह करने का कार्य करने लगते हैं, जिसके कारण वे फूलकर मोटे एवं मांसल हो जाते हैं। ये निम्निलिखित प्रकार के होते हैं-
(i) प्रकन्द (Rhizorne): यह मोटा, फैला हुआ भूमिगत तना होता है। इसमें कक्षस्थ तथा अग्रस्थ कलिकाएँ भी पायी जाती हैं। यह तना शाखारहित या शाखायुक्त हो सकता है। कभी-कभी इसमें अपस्थानिक जड़ (Adventitious roots) भी विकसित हो जाती है। इनमें स्पष्ट पर्व, पर्व सन्धियाँ तथा शल्क पत्र पाये जाते हैं। इस प्रकार का भूमिगत तना हल्दी, अदरक, केला, फर्न आदि पौधों में पाया जाता है।
(ii) स्तम्भ कन्द (stem tuber): यह एक प्रकार का भूमिगत तना है। यह भोजन संग्रह करने के कारण शीर्ष पर फ्ल जाता है। इस प्रकार के तने की सतह पर अनेक गड्ढ़े होते हैं, जिन्हें आंखें (eyes) कहते हैं। प्रत्येक आंख एक शल्क पत्र होता है, जो पर्व-सन्धि की स्थिति को दशतिा है तथा प्रसुप्त कलिकाएँ होती हैं। इन्हीं प्रसुप्त कलिकाओं से वायवीय (Aerial) शाखाएँ निकलती हैं जिनके अगले सिरे पर अग्रस्थ कलिका होती है जो कि अनुकूल परिस्थितियों में वृद्धि करके नए पौधे को जन्म देते हैं। इस प्रकार का तना आलू में पाया जाता है।
(iii) शल्क कन्द (Bulb): इस प्रकार का भूमिगत तना बहुत से छोटे-छोटे शल्क पत्रों (scaly leaves) से मिलकर बना होता है। यह शल्क पत्र जल तथा भोजन संग्रह करने के कारण मांसल (fleshy) हो जाते हैं। इस प्रकार के भूमिगत तने की बाहरी परत शुष्क (dry) होती है। यह तना संकेन्द्रीय क्रम में व्यवस्थित शल्क पत्र लिये हुए पाये जाते हैं। प्याज (Onion) तथा लहसुन (Garlic) इस प्रकार के भूमिगत तने का उत्तम उदाहरण है।
तना पौधे का वह भाग है जो कि भूमि एवं जल के विपरीत तथा प्रकाश (Light) की ओर वृद्धि करता है। यह प्रांकुर (Plumule) से विकसित होता है और शाखाओं, पतियों, फूल एवं फल धारण करता है।
तने की विशेषताएं (Characteristics of stem):
तना पौधे का आरोही भाग है, जो भूमि के विपरीत प्रकाश की ओर गति करता है। (Negatively geotropic but positively phototropic).
तने की अग्र सिरे पर कलिकाएँ (Buds) पायी जाती हैं, जिनसे तना वृद्धि करता है।
तने पर शाखाएँ (Branches) तथा पत्तियाँ लगेती हैं।
तने का आकार बेलनाकार, चपटा अथवा कोणीय (Angular) होता है।
तने के प्रकार: भूमि की स्थिति के अनुसार तना तीन प्रकार के होते हैं। ये हैं-
भूमिगत तना (Underground stem): पौधे के तने का वह भाग जो भूमि के अंदर पाया जाता है, भूमिगत तना कहलाता है। भूमिगत तने में पर्व सन्धियाँ, पर्ण कलिकाएँ तथा शल्क पत्र पाये जाते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भूमिगत तने भोजन संग्रह करने के कारण मोटा एवं मांसल हो जाता है। जैसे- हल्दी, अदरक, केला, फर्न, आलू, प्याज, लहसुन, कचालू, जिमीकन्द, अरबी आदि।
भूमिगत तने का रूपान्तरण (Modifications of underground stem): प्रतिकूल परिस्थितियों में भूमिगत तने भोजन संग्रह करने का कार्य करने लगते हैं, जिसके कारण वे फूलकर मोटे एवं मांसल हो जाते हैं। ये निम्निलिखित प्रकार के होते हैं-
(i) प्रकन्द (Rhizorne): यह मोटा, फैला हुआ भूमिगत तना होता है। इसमें कक्षस्थ तथा अग्रस्थ कलिकाएँ भी पायी जाती हैं। यह तना शाखारहित या शाखायुक्त हो सकता है। कभी-कभी इसमें अपस्थानिक जड़ (Adventitious roots) भी विकसित हो जाती है। इनमें स्पष्ट पर्व, पर्व सन्धियाँ तथा शल्क पत्र पाये जाते हैं। इस प्रकार का भूमिगत तना हल्दी, अदरक, केला, फर्न आदि पौधों में पाया जाता है।
) स्तम्भ कन्द (stem tuber): यह एक प्रकार का भूमिगत तना है। यह भोजन संग्रह करने के कारण शीर्ष पर फ्ल जाता है। इस प्रकार के तने की सतह पर अनेक गड्ढ़े होते हैं, जिन्हें आंखें (eyes) कहते हैं। प्रत्येक आंख एक शल्क पत्र होता है, जो पर्व-सन्धि की स्थिति को दशतिा है तथा प्रसुप्त कलिकाएँ होती हैं। इन्हीं प्रसुप्त कलिकाओं से वायवीय (Aerial) शाखाएँ निकलती हैं जिनके अगले सिरे पर अग्रस्थ कलिका होती है जो कि अनुकूल परिस्थितियों में वृद्धि करके नए पौधे को जन्म देते हैं। इस प्रकार का तना आलू में पाया जाता है।
(iii) शल्क कन्द (Bulb): इस प्रकार का भूमिगत तना बहुत से छोटे-छोटे शल्क पत्रों (scaly leaves) से मिलकर बना होता है। यह शल्क पत्र जल तथा भोजन संग्रह करने के कारण मांसल (fleshy) हो जाते हैं। इस प्रकार के भूमिगत तने की बाहरी परत शुष्क (dry) होती है। यह तना संकेन्द्रीय क्रम में व्यवस्थित शल्क पत्र लिये हुए पाये जाते हैं। प्याज (Onion) तथा लहसुन (Garlic) इस प्रकार के भूमिगत तने का उत्तम उदाहरण है।
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