तनम्नलिखखत ववषयों में से क्रकसी एक ववषय पर अनुच्छेद लिखखए |
(क) पुस्तक की आत्मकथा
1. प्रािीन स्वरूप
2. कार्ज़ का आववटकार
3. ज्ञान का भंडार पुस्तक
4. वतामान स्वरूप
( 100-150 words )
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Answers
Answer:
मैं पुस्तक हूँ । जिस रूप में आपको आज दिखाई देती हूं प्राचीन काल में मेरा यह स्वरूप नही था । गुरु शिष्य को मौखिक ज्ञान देते थे । उस समय तक कागज का आविष्कार ही नहीं हुआ था । शिष्य सुनकर ज्ञान ग्रहण करते थे ।
धीरे-धीरे इस कार्य में कठिनाई उत्पन्न होने लगी । ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए उसे लिपिबद्ध करना आवश्यक हो गया । तब ऋषियों ने भोजपत्र पर लिखना आरम्भ किया । यह कागज का प्रथम स्वरूप था ।
भोजपत्र आज भी देखने को मिलते हैं । हमारी अति प्राचीन साहित्य भोजपत्रों और ताड़तत्रों पर ही लिखा मिलता है ।
मुझे कागज का रूप देने के लिए घास-फूस, बांस के टुकड़े, पुराने कपड़े के चीथड़े को कूट पीस कर गलाया जाता है उसकी लुगदी तैयार करके मुझे मशीनों ने नीचे दबाया जाता है, तब मैं कागज के रूप में आपके सामने आती हूँ ।
मेरा स्वरूप तैयार हो जाने पर मुझे लेखक के पास लिखने के लिए भेजा जाता है । वहाँ मैं प्रकाशक के पास और फिर प्रेस में जाती हूँ । प्रेस में मुश् छापेखाने की मशीनों में भेजा जाता है । छापेखाने से निकलकर में जिल्द बनाने वाले के हाथों में जाती हूँ ।
वहाँ मुझे काटकर, सुइयों से छेद करके मुझे सिला जाता है । तब मेर पूर्ण स्वरूप बनता है । उसके बाद प्रकाशक मुझे उठाकर अपनी दुकान पर ल जाता है और छोटे बड़े पुस्तक विक्रेताओं के हाथों में बेंच दिया जाता है ।
मैं केवल एक ही विषय के नहीं लिखी जाती हूँ अपितु मेरा क्षेत्र विस्तृत है । वर्तमान युग में तो मेरी बहुत ही मांग है । मुझे नाटक, कहानी, भूगोल, इतिहास, गणित, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, साइंस आदि के रूप में देखा जा सकता है ।
Answer:
मैं पुस्तक हूं जिसे पढ़कर कोई भी मनुष्य विद्वान बनता है। मैं इंसान को अंधकार से उजाले की ओर ले जाने का काम करती हूं। मेरे कारण ही कोई भी मनुष्य सभ्य बन पाता है और अपने राष्ट्र के लिए कुछ कर पाता है। मुझमें लिखा हुआ ज्ञान ही मनुष्य को आज इतना आधुनिक बना पाया है।
छोटे बच्चे अपनी जिंदगी में ज्ञान प्राप्त करने की शुरुआत मुझसे ही करते हैं और समय के साथ साथ वे ज्ञानी होते जाते हैं। बाद में यही बच्चे बड़े होकर अपने राष्ट्र की प्रगति में भागीदार बनते हैंl
मुझे सिर्फ छोटे बच्चे ही नहीं बल्कि सभी उम्र के लोग पढ़ते हैं क्योंकि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती है। काफी लोग मुझे सिर्फ शौक के कारण पढ़ते हैं ताकि मैं अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकें।
इतना ही नहीं, कुछ लोग मुझे सिर्फ कहानी और कविता पढ़ने के लिए ही खरीदते हैं ताकि मैं उनका मनोरंजन कर सकूं। इन कहानी और कविताओं से भी उन्हें कुछ ना कुछ शिक्षा मिलती है और उनका नैतिक ज्ञान बढ़ाने में भी मदद करती हैं।
प्राचीन काल की बात करें तो मेरा उपयोग ज्ञान को संरक्षित रखने के लिए किया जाता था। ज्ञान की सारी चीजें मुझ में लिख दी जाती थी और उसे अच्छे से संभाल कर रखा जाता था। ज्ञान को संरक्षित करने का एक फायदा यह भी था कि उसे कोई व्यक्ति कुछ समय के बाद यदि भूल भी गया हो तो वह ज्ञान को दोबारा प्राप्त कर सकें। इसके कारण ही ज्ञान कभी भी नष्ट नहीं होता था और हमेशा मनुष्य के पास रहता था।
आज भी आप कई पुस्तक प्राचीन काल की देखते होंगे जिसमें ज्ञान की बहुत सारी बातें ऋषि-मुनियों द्वारा लिखी गई थी। यदि उस वक्त इन ज्ञान की बातों को संरक्षित ना किया जाता तो शायद आज हमें उनके द्वारा दिया गया ज्ञान ना प्राप्त होता।