English, asked by sailesakumarasailesa, 6 months ago

tansen ka jivan parichay​

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Answered by lb9752443313
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Answered by deepa0403
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Answer:

तानसेन का जन्म सन् 1506 में हुआ था. जिनका नाम तब तन्ना पड़ा था. संगीत का और ज्ञान अर्जित करने के लिए उन्हें स्वामी जी ने हजरत मुहम्मद गौस के पास ग्वालियर भेज दिया. संगीत का पर्याप्त ज्ञान अर्जित करने के बाद तानसेन पुनः स्वामी हरिदास के पास मथुरा लौट आये. यहाँ उन्होंने स्वामी जी से ‘नाद’ विद्या सीखी. अब तक तानसेन को संगीत में अद्भुत सफलता मिल चुकी थी. इनके संगीत से प्रभावित होकर रीवां – नरेश ने इन्हें अपने दरबार का मुख्य गायक बना दिया. रीवां – नरेश के यहाँ अकबर को तानसेन का संगीत सुनने का अवसर मिला.

वह इनके संगीत को सुनकर भाव – विभोर हो उठा. उसने रीवा – नरेश से आग्रह कर तानसेन को अपने दरबार में बुला लिया. इनके संगीत से प्रभावित होकर अकबर ने इन्हें अपने नवरत्नों में स्थान दिया. तानसेन के विषय में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित है कहा जाता है की इनके गायन के समय राग – रागिनियाँ साक्षात् प्रकट हो जाती थी.

एक बार बादशाह अकबर ने तानसेन से ‘दीपक राग’ गाने का हठ किया. निश्चित समय पर इन्होने दरबार में दीपक राग गाना शुरू किया. ज्यो – ज्यो आलाप बढ़ने लगा गायक और श्रोता पसीने से तर होने लगे. गाने का अंत होते – होते दरबार में रखे दीपक स्वयं जल उठे और चारो ओर अग्नि की लपटें दिखाई देने लगी.

विवाह :

तानसेन का परिचय राजा मानसिंह की विधवा पत्नी रानी मृगनयनी से हुआ। रानी मृगनयनी भी बड़ी मधुर तथा विदुषी गायिका थीं। वे तानसेन का गायन सुन कर बहुत प्रभावित हुईं। उन्होंने अपने संगीत-मंदिर में शिक्षा पाने वाली हुसैनी ब्राह्मणी नामक एक सुमधुर गायिका लड़की के साथ तानसेन का विवाह कर दिया। हुसैनी का वास्तविक नाम प्रेमकुमारी था। हुसैनी के पिता सारस्वत ब्राह्मण थे, किंतु बाद में यह अपरिवार मुस्लिम धर्म में दीक्षित हो गए। प्रेमकुमारी का इस्लामी नाम हुसैनी रखा गया। ब्राह्मणी कन्या होने के कारण सभी उसे हुसैनी ब्राह्मणी कहकर पुकारते थे, इसी से तानसेन का घराना 'हुसैनी घराना' कहा जाने लगा था।

मोहम्मद घौस से शिक्षा :

तानसेन ने अपने पिता की अंतिम इच्छा को याद करते हुए मोहम्मद घौस से शिक्षा लेने का विचार किया | अपने नये गुरु से शिक्षा लेने से पहले तानसेन अपने पहले गुरु हरिदास जी से आज्ञा लेने गया | हरिदास ने तानसेन से कहा “तुम्हे चिंता करने की कोई जरूरत नही है , तुम्हे अपने पिता की अंतिम इच्छा का सम्मान करना चाहिए और नये गुरु से शिक्षा लो  , याद रखना मै तुम्हारे लिए सदैव तैयार हु जब भी तुम्हे जरूरत हो तुम मेरे पास आ जाना , तुम मेरे पुत्र की तरह हो ” | इस तरह हरिदास ने तानसेन को आशीर्वाद देकर विदा किया |

अब तानसेन तीन वर्षो तक मोहम्मद घौस से शिक्षा लेने लगे और अपनी संगीत प्रतिभा सुधारने लगे | मोहम्मद घौस उनको ग्वालियर के राजा के पास मिलाने गये | तानसेन का अब ग्वालियर दरबार में आना जाना लग गया | वो एक दिन दरबार मर हुसैनी नामक महिला से मिले जिससे तानसेन को प्यार हो गया | तानसेन ने उससे विवाह कर लिया | कुछ वर्षो बाद मोहम्मद घौस अपनी सारी धन-दौलत तानसेन के नाम कर मर गये | तानसेन का परिवार मोहम्मद घौस के घर में बस गया और वही से आगे बढ़ा |

रचनायें :

        तानसेन के नाम के संबंध में मतैक्य नहीं है। कुछ का कहना है कि 'तानसेन' उनका नाम नहीं, उनकों मिली उपाधि थी। तानसेन मौलिक कलाकार थे। वे स्वर-ताल में गीतों की रचना भी करते थे। तानसेन के तीन ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है :

1. 'संगीतसार',

2. 'रागमाला' और

3. 'श्रीगणेश स्तोत्र'।

भारतीय संगीत के इतिहास में ध्रुपदकार के रूप में तानसेन का नाम सदैव अमर रहेगा। इसके साथ ही ब्रजभाषा के पद साहित्य का संगीत के साथ जो अटूट सम्बन्ध रहा है, उसके सन्दर्भ में भी तानसेन चिरस्मरणीय रहेंगे।

संगीत सम्राट तानसेन अकबर के अनमोल नवरत्नों में से एक थे। अपनी संगीत कला के रत्न थे। इस कारण उनका बड़ा सम्मान था। संगीत गायन के बिना ‍अकबर का दरबार सूना रहता था। तानसेन के ताऊ बाबा रामदास उच्च कोटि के संगीतकार थे। वह वृंदावन के स्वामी हरिदास के शिष्य थे। उन्हीं की प्रेरणा से बालक तानसेन ने बचपन से ही संगीत की शिक्षा पाई। 

स्वामी हरिदास के पास तानसेन ने बारह वर्ष की आयु तक संगीत की शिक्षा पाई। वहीं उन्होंने साहित्य एवं संगीत शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की। संगीत की शिक्षा प्राप्त करके तानसेन देश यात्रा पर निकल पड़े। उन्होंने अनेक स्थानों की यात्रा की और वहाँ उन्हें संगीत-कला की प्रस्तुति पर बहुत प्रसिद्धि तो मिली, लेकिन गुजारे लायक धन की उपलब्धि नहीं हुई।

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