“तप की राह रेगिस्तान को जाती होगी, मोक्ष की राह वह नहीं है पंक्ति से लेखक का क्या आशय है? 'बाज़ार दर्शन पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
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मन खाली नहीं रहना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। ... सत्य इच्छाओं का निरोध कर लोगे, यह झूठ है और अगर 'इच्छानिरोधस्तपः' का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो यह तप झूठ है। वैसे तप की राह रेगिस्तान को जाती होगी, मोक्ष की राह वह नहीं है। ठाठ देकर मन को बंद कर रखना जड़ता है।
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प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि तप करना व्यर्थ परिश्रम करना है। जीवन में तप का कोई महत्त्व नहीं है। उपभोग के असीमित साधनों के मध्य रहते हुए भी उनका उपभोग न करना अर्थात् मन को मारना बेकार है। इसके स्थान पर व्यक्ति को अपनी आवश्यकताएँ ही सीमित रखनी चाहिए तथा उन आवश्यकताओं की पूर्ति का ही प्रयत्न करना चाहिए। अतः लेखक ने 'तप करने' पर व्यंग्य करते' हुए कहा है कि तप करने से मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
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