तदनन्तर बैठी
बैठी सभा
उटज के आगे,
नीले वितान के तले दीप बहु जागे।
टकटकी लगाए
नयन सुरों के थे वे,
परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे।
उत्फुल्ल करौंदी-कुंज वायु रह
करती थी सबको पुलक-पूर्ण मह महकर।
वह चन्द्रलोक था, कहाँ चांदनी वैसी,
प्रभु बोले गिरा गम्भीर नीरनिधि जैसी।
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what could I do for this question
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eska kya answer dena hai
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