tel ki gaagar kr drasyant ke madayam se kavi kya bavh prakat krna chata h
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तेल की गागर' के दृष्टांत के माध्यम से कवि निर्लिप्तता का भाव प्रकट करना चाहता है। जिस प्रकार तेल की गागर जल में रहकर भी जल से निर्लिप्त रहती है ठीक उसी प्रकार उद्धव भी जल के मध्य रखे तेल के गागर (मटके) की भाँति हैं, जिस पर जल की एक बूँद भी टिक नहीं पाती।
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