Hindi, asked by kaushik554971, 1 year ago

tell me the poem of Hindi Himalaya written by Ramdhari Singh Dinkar​

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Answered by 3478payalpayu
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Answer:

मेरे नगपति! मेरे विशाल!: रामधारी सिंह दिनकर

मेरे नगपति! मेरे विशाल!

साकार दिव्य गौरव विराट्,

पौरुष के पुंजीभूत ज्वाल!

मेरी जननी के हिम–किरीट!

मेरे भारत के दिव्य भाल!

मेरे नगपति! मेरे विशाल!

युग–युग अजेय, निर्बन्ध मुक्त,

युग–युग शुचि, गर्वोन्नत, महान्,

निस्सीम व्योम में तान रहा

युग से किस महिमा का वितान्?

कैसी अखण्ड यह चिर समाधि?

यतिवर! यह कैसा अमिट ध्यान?

तू महा शून्य में खोज रहा

किस जटिल समस्या का निदान?

उलझन का कैसा विषम जाल?

मेरे नगपति! मेरे विशाल!

ओ मौन तपस्या–लीन यती!

पलभर को तो कर दृगुन्मेष!

रे ज्वालाओं से दग्ध, विकल

है तड़प रहा पद पर स्वदेश।

कितनी मणियाँ लुट गयीं? मिटा

कितना मेरा वैभव अशेष।

तू ध्यान–मग्न ही रहा इधर

वीरान हुआ प्यारा स्वदेश।

तू तरुण देश से पूछ अरे

गूँजा यह कैसा ध्वंस राग?

अम्बुधि–अन्तस्तल–बीच छिपी

यह सुलग रही हे कौन आग?

प्राची के प्रांगण–बीच देख

जल रहा स्वर्ण–युग–अग्नि–ज्वाल

तू सिंहनाद कर जाग तपी?

मेरे नगपति! मेरे विशाल!

रे रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,

जाने दे उनको स्वर्ग धीर,

पर, फिरा हमें गाण्डीव–गदारु

लौटा दे अर्जुन–भीम वीर।

कह दे शंकर से आज करें

वह प्रलय–नृत्य फिर एक बार।

सारे भारत में गूँज उठे,

‘हर–हर–बम’ का फिर महोच्चार

ले अंगड़ाई, उठ, हिले धरा,

कर निज विराट् स्वर में निनाद,

तू शैलराट् ! हुँकार भरे,

फट जाए कुहा, भागे प्रमाद!

तू मौन त्याग, कर सिंहनाद,

रे तपी, आज तप का न काल।

नव–युग–शंखध्वनि जगा रही,

तू जाग जाग मेरे विशाल!

~ रामधारी सिंह ‘दिनकर’

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