Ten ways to protect animals and birds
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भारत पशु सुरक्षा और संरक्षण की दिशा में आज भी दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले बहुत पिछड़ा हुआ है। हम मूक पशुओं का दोहन करने में अवश्य आगे रहते हैं मगर स्वास्थ्य की देखभाल और चिकित्सा में पीछे हैं। यही कारण है कि दुनिया में सर्वाधिक पशु होने के बावजूद उनका पूरा फायदा नहीं उठा पाते। छोटे-छोटे देश भी दुग्ध उत्पादन में हमसे आगे है। इसका एक मात्र कारण हमारी बेजुबान पशुओं के प्रति उदासीनता है। आज जरूरत इस बात की है कि हम खुद भी जगें और दूसरों को भी जगाएं तभी मूक पशुओं का समय पर उपचार कर पाएंगे। अक्सर देखा जाता है कि हम अपने परिवारजनों का भी समुचित इलाज नहीं करा पाते फिर पशु तो बेचारा अपनी बीमारी और लाचारी के बारे में कुछ बोल भी नहीं सकता। यह हालत विशेषकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों की है।
मूक पशु−पक्षियों की सुरक्षा, संरक्षण एवं संवर्धन करना मानव मात्र की जिम्मेदारी है। इसके लिए आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने में पशु चिकित्सा विभागीय कर्मचारी−अधिकारी की महती भूमिका होती है। दैनंदिनी जीवन में छोटी−छोटी, किंतु महत्वपूर्ण सावधानियां बरत कर पशु−पक्षियों को अकाल मौत से बचाया जा सकता है। अक्सर देखा जाता है कि जब तक पशु उपयोगी होता है तब तक हम पशुओं की देखभाल करते हैं जैसे ही पशु बीमार हो जाता है या उपयोगी नहीं रहता, हम पशुओं से अपना ध्यान हटा लेते हैं। विभिन्न अवसरों पर बचे−खुचे भोज्य पदार्थों एवं खाद्य सामग्री से भरे या खाली पॉलीथिन खुले में न छोड़कर निर्धारित स्थानों पर इन्हें नष्ट करना चाहिए। अन्यथा पशु−पक्षी विषाक्त आहार को खाकर बीमार हो जाते हैं। अपने पशुओं को लावारिस हालत में नहीं छोड़ना चाहिए। इससे पशु दुर्घटनाग्रस्त होकर चोटिल होते हैं और अकाल मौत मरते हैं। इससे यातायात बाधित होकर जनहानि होती है। इस भीषण गर्मी में यदि हो सकें तो पशु−पक्षियों के पीने के लिए जगह निर्धारित कर नांदों में पानी रखना चाहिए।
पशु−उत्पीड़न कोई नई समस्या नहीं है। सदियों से पशुओं के साथ बुरा व्यवहार होता आया है। इतिहास की पुस्तकों से पता चलता है कि मानव का पहला साथी कुत्ता बना क्योंकि इसकी स्वामिभक्ति पर आज तक किसी प्रकार का संदेह नहीं व्यक्त किया गया है।
जैसे−जैसे मानव घर बसाकर रहने लगा, उसे खेती करने की आवश्यकता हुई और वैसे−वैसे पशुओं का महत्व भी बढ़ता गया। आर्य संस्कृति में गौ−जाति का बड़ा महत्व था, जिसके पास जितनी अधिक गाएँ होती थीं वह उतना ही प्रतिष्ठित और संपन्न माना जाता था। ऋषि−मुनि भी गौ पालते थे, वनों में घास की उपलब्धता प्रचुर थी। समय के साथ−साथ मनुष्य की आवश्यकताओं का विस्तार हुआ, तब उन्होंने गाय, भैंस, बैल, बकरी, ऊँट, घोड़ा, गदहा, कुत्ता आदि पशुओं को पालना आरंभ किया।
जिस भूखंड का जलवायु जीवन के अनुकूल हो और वहाँ पर हरी−भरी वनस्पतियाँ पाई जाती हों, वहाँ पशु−पक्षी और जीव−जन्तुओं का पाया जाना एक नैसर्गिक सत्य है। किसी भी भूखंड में विचरण करने वाले पशु−पक्षी और जीव−जन्तुओं की उपस्थिति से वहाँ की जलवायु का अनुमान लगाया जा सकता है। जंगली जीव−जन्तु और पशु−पक्षी स्वच्छन्द रूप से वनों और जंगलों में विचरण करते हैं, जिनमें से कुछ समय−समय पर मानव जाति को विविध रूपों में कष्ट देते चले आये हैं और आज भी कष्ट देते हैं। किन्तु पालतू पशु−पक्षी सदैव से मानव जाति के उपयोग में आते रहे हैं और वे मनुष्य जाति को सुख, सुविधा और समृद्धि प्रदान करते रहे हैं।
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