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समानता और निष्पक्षता से दूर जाता हमारा समाज
वर्ण के आधार पर समाज का विभाजन, जिसे अब जाति कहा जाता है वैदिक काल से ही मौजूद रहा है। इस व्यवस्था की शुरुआत व्यक्ति के पेशे की सम्माननीय पहचान के रूप में हुई थी लेकिन, मुगलकाल के बाद और ब्रिटिश शासन में जाति का इस्तेमाल 'फूट डालो और राज करो' के औजार के रूप में किया गया।
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