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भूमिका:- जिस प्रकार संतुलित आहार से हमारा शरीर हस्टपुस्ट होता है। उसी प्रकार मानसिक विकास के लिए अध्ययन तथा स्वास्थ्य का बड़ा महत्व है। इस संसार मे ज्ञान से बड़कर कोई अन्य वस्तु पवित्र नही हो सकती। ज्ञान के अभाव में मानव था पशु में कोई अंतर नहीं होता। ज्ञान ही ईशवर है। ज्ञान प्राप्त करने के अनेक साधन है। जिसमें सत्संग, देशाटन तथा सद्ग्रन्थों का अध्धयन है। इन सब मे पुस्तक को ज्ञान पताप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन मना गया है। पुस्तकें ज्ञान राशि के अथाह भंडार को अपने मे संचित किये रहती है। इनके द्वारा घर बैठे हजारो वर्षो के सद्ग्रन्थों की प्राप्ति होती है। जो हमें पुस्तकालयों से होती है। जिनमे हम विज्ञान से परिचित हो सकते है।
पुस्तकालय की उत्पत्ती:- पुस्तकालय दो शब्दों के योग से बना है। पुस्तकों का घर। केवल पुस्तको को एक स्थान पर एकत्रित करने अथवा एक कमरे में भर देने से पुस्तकालय नहीं बन जाता। पुस्तकालय तो एक ऐसा स्थान है। जिसके उपयोगादी का सुनियोजित विधान होता हैं।
पुस्तकालय का महत्व:- पुस्तकालय वह स्थान है। जहाँ पुस्तकों का समूह होता है। यह पुस्तकें पाठकों को कुछ समय के लिए पढ़ने के लिए उधार दी जाती है। जब समय समाप्त हो जाता है, तो वे पस्तकें वापस कर देते है और नई पस्तकें उधार ले लेते है। प्रत्येक जो पुस्तकालय से पुस्तक उधार लेता है, उसे मासिक या वार्षिक शुल्क चुकाना पड़ता है। फिर वह पुस्तकालय का सदस्य बन जाता है और पुस्तक उधार लेने का अधिकार प्राप्त कर लेता है।
पुस्तकालय सबका सच्चा दोस्त:- पुस्तकालय उनको एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। जो पुस्तके क्रय नही कर सकते है। हमारे देश मे प्रत्येक पाठक प्रत्येक पुस्तक खरीद नही सकता है। बहुत कम लोग ऐसा कर पाते है। पुस्तकालय सार्वजनिक सम्पत्ति है। सरकार कस्बो, नगरों, गाँवो में पुस्तकालय खोलती है और उनकी भी मद्त हो जाती है। जो पुस्तक खरीदने में असमर्थ होती है। लेकिन शिक्षा प्राप्त करना चाहते है। इसलिए पुस्तकालय गरीब हो या कोई अमीर व्यक्ति सभी की एक सच्चा मित्र के समान होती है।
पुस्तकालय के लाभ:- पुस्तकालय से अनेक लाभ है। ये ज्ञान का सक्षम भण्डार है। पुस्तकालय एक ऐसा स्त्रोत है। जहाँ से ज्ञान की निर्मल धारा सदैव वहति रहती है। रामचन्द्र शुक्ल ने ठीक कहा है।
“पुस्तकों के द्वारा हम किसी महापुरुष को जितना जान सकते है। उतना उनके मित्र क्या पुत्र तक भी नही जान सकते”
एक ही स्थान पर विभिन्न भाषाओं, धर्मो, विषयों, वैज्ञानिको, आविष्कारो ऐतिहासिक तथ्यों से सम्बंधित पुस्तकें केवल पुस्तकालय मे ही उपलब्ध हो सकती है।
पुस्तकालय के द्वारा हम आत्मबुद्धि तथा आत्म परिष्कार कर सकते है। पुस्तकों से एक ऐसी ज्ञान धारा बहती है। जो हमारे ह्रदय और हमारे मस्तिष्क का विकास करती है। एकान्त तथा शांत वातावरण में अध्ययनशील होकर कोई भी व्यक्ति ज्ञान की अनेक मणियो को प्राप्त कर सकता है। इस स्थान पर विभिन्न देश तथा कालो के अमूल्य अप्राप्य ग्रन्थ, सुलभता से मिल सकते है पुस्तकों के ज्ञान से हमारा सामान्य ज्ञान भी बढ़ता है।
आधुनिक महंगाई और निर्धनता में प्रत्येक व्यक्ति के लिये अधिक गर्न्थो का क्रय करना सम्भव नही है। पुस्तकालय में नाममात्र का शुल्क देकर अथवा मुफ्त सदस्यता प्राप्त करके अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया जा सकता है। पुस्तकालय में जाकर हमारा पर्याप्त मनोरंजन भी होता है। यहाँ हम अपने अवकाश के क्षणों का सदुपयोग कर सकते है। पुस्तकालय में बेठने से अध्ययन व्रती को बढ़ावा मिलता है तथा गहन अध्ययन सम्भव होता है। महात्मा गांधी कहा करतें थे कि – भारत के प्रत्येक घर मे पुस्तकालय होना चाहिए।
पुस्तकालय की पुस्तक का सदुपयोग:- पुस्तकालय समाजिक महत्व की जगह है। अतः यहाँ के ग्रन्थों को बर्बाद नही करना चाहिए। पुस्तकें समय पर लौटानी चाहिए तथा उनके पृष्ठो को गंदा नही करना चाहिए और न ही पृष्ठ फाड़ने अथवा चित्र काटने चाहिए। पुस्तकालय में बैठ कर शांतिपूर्ण अध्ययन करना चाहिए। पुस्तक जहां से निकली है। अध्यनोपरांत पुस्तक वहीं रख दी जानी चाहिए।
उपसंहार:- आज हमारे देश मे अनेक पुस्तकालय है। परंतु अभी भी अच्छे पुस्तकालय की बहुत कमी है। इस अभाव को दूर करना सरकार का कर्त्तव्य है। अशिक्षा, निर्धनता, अधिकारो की उपेक्षा आदि के कारण हमारे देश मे पुस्तकालय की हिन दशा है। पुस्तकालय का छात्रों के लिए विशेष महत्व है। अच्छे पुस्तकालय राष्ट निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। अतः सरकार तथा अन्य संस्थानों को चाहिए कि अच्छे पुस्तकालय की स्थापना करें व पुस्तक के महत्व पर लोकमान्य तिलक ठीक ही कहा करते थे।
“में नरक में भी उत्तम पुस्तकों के स्वागत करूँगा, क्योंकि पुस्तके जहां होंगी वही स्वर्ग आ जाएगा”।