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Explanation:
1)प्रस्तावना:- आज जल, थल तथा नभ में विज्ञान की पताका लहरा रही है। जीवन तथा विज्ञान एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं। विज्ञान से मानव को असीमित शक्ति मिली है आज वह पक्षी की भांति वीहार कर सकता है। पर्वर्तों को लांघ सकता है तथा सागर की छाती को चीर कर जलयान द्वारा अपने स्थान पर इठला सकता है। प्रकति को उसने अपनी दासी बना लिया है। दूरियां सिमट कर रह गई है संपूर्ण विश्व एक परिवार के सदृश्य हो गया है काल की छाती पर करारा घुसा मार कर विज्ञान मंद मंद गति से मुस्कुरा रहा है।
2)विज्ञान की व्यापकता:- विज्ञान की व्यापकता सभी क्षेत्र में हुई है। विश्व के अलग-अलग देशों में आगे बढ़ने की परस्पर होढ़ लगी है।यही कारण है कि हमारे इच्छाएं तथा आराम की सीमाएं भी बढ़ती जा रही है। भोजन, आवास, यातायात, चिकित्सा, मनोरंजन, कृषि, युद्ध, उधोग, आदि सभी क्षेत्र विज्ञान से प्रभावित हैं आधुनिक युग में विज्ञान के बिना मानव के अस्तित्व की कल्पना भी असंभव प्रतीत होती है। विज्ञान की सहायता से मनुष्य भौतिक शसक्तियो पर विजय प्राप्त कर रहा है और प्रकृति के गुढ़ रहस्यो को को प्रकाश में ला रहा है। आकाश में उड़ते विमान,चंद्रयान उसका यशगान करते है। समुद्र की छाती पर तीव्र गति से तैरते हुए जलयान ओर पनडुब्बियां उसकी कीर्ति- पताका फहराते प्रतीत होते हैं ।
3)विज्ञान के अनेक उपयोग:- इंधन, उपकरण आदि ऐसे साधन विज्ञान देन हैं, कि जीवन बहुत सक्रिय हो गया है । बिजली द्वारा संचालित पंखे, बल्ब, हीटर, कूलर आदि साधन,प्राप्त है अब तो विधुत से झाड़ू लगाना, कपड़े धोना-सुखना ओर प्रेस करना आदि भी सम्भव है। कंप्यूटर ने तो मनुष्य के मष्तिस्क का कार्यभार सभाल लिया है।
4)यातायात:- विज्ञान ने मानव जीवन में दूरियों को नजदीकी में बदल दिया है मानव जिस दूरी पर अपार जन धन की हानि के बाद वर्षों में पहुंच पाता था आज उसे अल्प समय में ही तय कर सकता है साइकिल स्कूटर ,कार, मोटर, रेलगाड़ी, हवाई जहाज और रॉकेट जैसे वाहन चालक आज मनुष्य के पास है चंद्रमा का भ्रमण कर चुका है और अन्य ग्रह पर जाने की तैयारी में है।
5)मनोरंजन:- मनुष्य को श्रम करके थकने के बाद मनोरंजन की आवश्यकता होती है आज रेडियो, टेपरिकार्डर , वी.सी.आर., टेलीविजन , सिनेमा ,आदी वैज्ञानिक साधन मनुष्य के मनोरंजन के लिए हर समय तैयार हैं मनोरंजन के साथ-साथ इनसे विभिन्न स्थानों , विषयों, सांस्कृतिक, कार्यक्रम आदि का ज्ञान प्राप्त होता है। इसमें दूर स्थित कार्यक्रम घर बैठे ही देखें सुने जा सकते हैं।
6)चिकित्सा:- ओषधि विज्ञान और शल्य विज्ञान आज इतना विकसित हो गया है कि शरीर के अंदर के प्रत्येक रोग को एक्स-रे आदि द्वारा पता कर सकते हैं वैज्ञानिक साधनों से कैंसर जैसे दुस्साध्य रोगों उपचार संभव हो गए हैं परखनली द्वारा शिशु को जन्म देकर विज्ञान आज जीवनदाता बन गया है।
विज्ञान ने मनुष्य को जहाँ अपार सुविधाएँ प्रदान की हैं वहीं दूसरी ओर दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि नाभिकीय यंत्रों आदि के विध्वंशकारी आविष्कारों ने संपूर्ण मानवजाति को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है । अत: एक ओर तो यह मनुष्य के लिए वरदान है वहीं दूसरी ओर यह समस्त मानव सभ्यता के लिए अभिशाप भी है ।
वास्तविक रूप में यदि हम विज्ञान से होने वाले लाभ और हानियों का अवलोकन करें तो हम देखते हैं कि विज्ञान का सदुपयोग व दुरुपयोग मनुष्य के हाथ में है । यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह इसे किस रूप में लेता है । उदाहरण के तौर पर यदि नाभिकीय ऊर्जा का सही दिशा में उपयोग किया जाए तो यह मनुष्य को ऊर्जा प्रदान करता है जिसे विद्युत उत्पादन जैसे उपभोगों में लिया जा सकता है ।
परंतु दूसरी ओर यदि इसका गलत उपयोग हो तो यह अत्यंत विनाशकारी हो सकता है । द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी शहरों में परमाणु बम द्वारा हुई विनाश-लीला इसका ज्वलंत उदाहरण है ।
आज विज्ञान के ही कारण मानव-विज्ञान अत्यधिक खतरों से परिपूर्ण तथा असुरक्षित भी हो गया है। कम्प्यूटर तथा दूसरी मशीनों ने यदि मानव को सुविधा के साधन उपलब्ध कराये हैं तो साथ-साथ रोजगार के अवसर भी छीन लिये है। विद्युत विज्ञान द्वारा प्रदत्त् एक महान् देन है परन्तु विद्युत का एक मामूली झटका ही मनुष्य का जीवन समाप्त कर सकता है। विज्ञान के दिन-प्रतिदिन होते जा रहे नवीन आविष्कारों के कारण मानव पर्यावरण असन्तुलन के दुष्चक्र में भी फँस चुका है।
सुख-सुविधाओं की अधिकता के कारण मनुष्य आलसी और आरामतलब बनता जा रहा है जिससे उसकी शारीरिक शक्ति का ह्वास हो रहा है अनेक नये-नये रोग उत्पन्न हो रहे हैं तथा उसमें सर्दी और गर्मी सहने की क्षमता घट गयी है। चारों ओर का कृत्रिम आडम्बरयुक्त जीवन इस विज्ञान की ही देन है। औद्यगिक प्रगति ने पर्यावरण-प्रदूषण की विकट समस्या खड़ी कर दी है।
9)उपसंहार
अंत में कहा जा सकता है कि विज्ञान ने दोनों प्रकार के वस्तुएं प्रदान कि है। संरचनात्मक और विनाशआत्मक आज वैज्ञानिकों ,राजनीतिज्ञों तथा समाजसेवियो का कर्तव्य है कि विज्ञान के प्रयोग स्वरूप को ही महत्व दें अंतरिक्ष की खोज के लिए विज्ञान का प्रयोग हो, परस्पर लड़ने हेतु नहीं ।अब आवश्यक है की विज्ञान की ऐसी उपलब्धियां हो जो मनुष्य में आत्मसंतोष ,धैर्य,आदि की वृद्धि कर सके इस दिशा में विज्ञान को सक्रिय होना चाहिए। स्थान की दूरी कम करने के साथ ही मानव ह्रदय की दूरी भी कम करना आवश्यक है। तभी “वसुधैव कुटुंबकम “की स्थापना हो सकेगी और तब यह विज्ञान की महान उपलब्धि होगी।
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