Hindi, asked by llXxMrSubanshxXll, 3 months ago

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अपनी किसी रमणीय यात्रा पर आधारित 200 शब्दों का एक निबंध लिखें।
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Answered by patilbhagya32
10

Answer:

भूमिका- दैनिक जीवन के एक निश्चित कार्यक्रम के अनुसार निरन्तर कार्य करते – मनुष्य थक जाता है। दूसरी ओर कार्य करते-करते वह ऊब भी जाता है। तब उसे एक विशेष परिवर्तन की आवश्यकता पड़ती है जिससे वह अपने कार्य करने के लिए पुनः तत्पर हो जान है। इस प्रकार के परिवर्तन से मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। मनुष्य किस प्रकार का परिवर्तन चाहता है, यह उसकी प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। कुछ लोग विशेष प्रकार के ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा करते हैं, कुछ लोग अपनी यात्रा में अनेक प्रमुख शहरों की यात्रा को महत्त्व देते हैं तथा। कुछ लोग धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं और धार्मिक स्थानों, मंदिरों की यात्रा भी करते हैं। यात्रा निश्चय ही मनुष्य को आनन्द प्रदान करती है तथा ज्ञानार्जन करने का साधन भी बनती है। क्योंकि यात्रा करते हुए वह सभी कुछ अपनी आंखों से देखता है। प्राकृतिक दृश्य मन को लुभाते हैं, नये स्थान, अपरिचित लोग, बदले हुए वातावरण से उसे प्रसन्नता मिलती है। प्राचीन काल में हमारे देश में तपस्वी लोग कभी भी किसी एक ही स्थान पर अधिक समय के लिए नहीं ठहरते थे। क्योंकि उनका विचार था कि इससे मनुष्य का ज्ञान ही सीमित नहीं होता अपितु वह गतिहीन और शून्य के समान हो जाता है। हमारे विद्यालय में श्री शर्मा जी इस प्रकार के अध्यापक है जो बच्चों के साथ प्रमण करने के लिए सदैव इच्छुक रहते हैं तथा अनेक अवसरों पर वे छात्रों को अनेक स्थानों की यात्रा करवा चुके हैं।

यात्रा का निर्णय और तैयारी– इस बार अप्रैल, में हमारे विद्यालय की दसवीं कक्षा के छात्रों ने यह निर्णय किया कि शर्मा साहब से यह प्रार्थना की जाए कि वे किसी पर्वतीय स्थल की यात्रा का कार्यक्रम बनाएं। इस प्रकार किस स्थान पर जाया जाय, इसके लिए सभी ने अनके स्थानों के नाम बताए जैसे-मंसूरी, नैनीताल, शिमला आदि। पर इन अनेक स्थानों के भ्रमण करने में यह प्रमुख कठिनाई थी कि हमारे विद्यालय में चार दिन का अवकाश था। अन्त में सभी ने मिलकर यह निर्णय किया कि इस बार वैष्णो देवी की यात्रा की जाय। यह निश्चय होते ही सभी हर्ष से उछल पड़े तथा ‘जय माता की जय माता की घोष करने लगे। क्योंकि गर्मियों का समय था अत: विशेष ऊनी वस्त्रों की आवश्यकता नहीं थी परन्तु अपने अध्यापक के कहने पर हमने एक-एक पूरी बाहों की स्वैटर भी रखने का निश्चय किया। हमारे दल में ‘लड़कों की संख्या तीस हो गई थी। जालन्धर से जम्मू के लिए रात को दो। बजे जेहलम एक्स्प्रेस गाड़ी जाती है, उसमें ही हमने जाने का निश्चय किया। क्योंकि यात्रा केवल 4 दिन की रखी गई अत: कोई विशेष सामान रखने की आवश्यकता प्रतीत हुई। इसके अतिरिक्त रास्ते में क्योंकि सभी सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं अत: साथ में अधिक सामान रखना आवश्यक नहीं था। हम सभी छात्र ठीक डेढ़ बजे रात को रेलवे स्टेशन जालन्धर में पहुंचे। कई छात्रों के साथ उन्हें छोड़ने के लिए उनके माता-पिता तथा अभिभावक भी आए थे। निश्चित समय पर गाड़ी प्लेट फार्म पर पहुंची। हमने देखा कि जालन्धर स्टेशन पर ही लगभग चार-पाँच सौ लोग वैष्णो देवी की यात्रा के लिए जा रहे थे क्योंकि गाड़ी के चलने के समय ‘जय माता दी’ ध्वनि गूंजने लगी।

यात्रा का वर्णन– रात को गाड़ी दो बजे जालन्धर से चल पड़ी। कुछ समय तक हम सभी लोग आपस में बातें करते रहे लेकिन धीरे-धीरे छात्रों को नींद आने लगी और हम सभी सो गए। सुबह सात बजे के लगभग हम जम्मू तवी में पहुंचे। उस दिन के लिए सभी ने यह निश्चय किया कि जम्मू में रुकें और घूमें। अत: हम सभी रघुनाथ मन्दिर के पास की एक सराय में रुके जिसमें सभी प्रकार की व्यवस्था थी। यहां पर पहुंच कर सभी शौचादि क्रिया से निवृत हो कर स्नान कर तैयार हुए और रघुनाध मन्दिर में दर्शन के लिए चल पड़े। इस मन्दिर में बहुत ही भव्य मूर्तियां रखी हैं तथा कहते हैं कि वहां 84 लाख के लगभग देवताओं के प्रतीक बनाए हुए हैं। रघुनाथ मन्दिर में बहुत भीड़ थी। अनेक शहरों से लोग यहां आए थे। कुछ लोग वैष्णो देवी की यात्रा करके वापिस आ गए थे और कुछ लोग हमारी ही भांति यात्रा करने के लिए जाने वाले थे। रघुनाथ मंदिर

Answered by AngeIianDevil
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यात्रा यानि की अपनी जगह से कई दूर घुमने फिरने के लिए जाना ताकि हम अपनी रोज की भाग दौड़ भरी जिंदगी से कुछ समय के लिए निजात पा सके और अपने परिवार और दोस्तों को समय दे सके। यात्रा से व्यक्ति को बहुत अच्छा महसूस होता है और सभी के साथ मिल जुलकर रहने का अच्छा समय भी मिलता है। यात्रा के कई साधन है जैले कार,बस, रेलगाड़ी आदि। मुझे तो सबसे ज्यादा ट्रेन की यात्रा पसंद है। भारत में बहुत से पर्यटन स्थल है। बहुत से यात्री वहाँ जाते है और वहाँ की सुंदरता का लुप्त उठाते है। लोग धार्मिक स्थलों की भी यात्रा करने जाते है।

मैं भी इस साल अप्रैल में अपने दोस्तों के साथ वैष्णों देवी की यात्रा पर गई थी। मैं वहाँ अपने परिवार के साथ पहले भी जा चुकी थी और हमनें बहुत ही मजे किए थे। दोस्तों के साथ यात्रा का और परिवार के साथ यात्रा का अलग ही मजा है। हम पाँच दोस्त थे और हमने रेलगाड़ी से यात्रा करने का तय किया था और उस समय रेलों मैं बहुत ही ज्यादा भीड़ थी। हमारी ट्रेन अंबाला से रात के 10 बजे की थी। ट्रेन के आते ही हम सब उसमें सवार हो गए और खाना खाया। हम सभी दोस्तों ने रात को लुडो खेला, अंताक्षरी खेली। जम्मु से ट्रेन के गुजरते वक्त हमनें खिड़किया खोलकर ठंडी हवा का आंनद लिया। हम सुबह 7 बजे कटरा पहुँचे जहाँ के पहाड़ों में माता वैष्णों देवी का मंदिर स्थित है।

हम लोगों ने वहाँ पर पहुँचकर हॉटल में कमरा लेकर विश्राम किया और एक बजे माता के मंदिर के लिए चढाई शुरू की जो कि 14 किलोमीटर की है। लगभग दो किलोमीटर चढ़ने के बाद हम बाण गंगा पहुँचे और वहाँ पर स्नान किया। गंगा का पानी बहुत ही शीतल था। उसके बाद हमने रूककर खाना खाया। वैष्णों देवी की चढ़ाई पर सुरक्षा के बहुत ही अच्छे इंतजाम किए गए है। बुढ़े लोगों की चढाई के लिए खच्चर और पालकी आदि का इंजाम है। बच्चों को और बैगों को उठाने के लिए पिठ्ठू वाले है। उनकी हालत बहुत ही दयनीय होती है वह अपनी आजीविका चलाने के लिए यह कार्य करते है। हम आस पास देखते हुए हंसते खेलते माता रानी का नाम लेकर चढ़ाई चढ़ते गए। दोपहर में गर्मी होने के कारण हम थोड़ी-थोड़ी दुरी पर नींबू पानी जूस आदि पीते रहे। ऐसे करते करते हम माता के मंदिर पहुँच गए और 6 घंटे लाईन में लगने के बाद माता रानी के दर्शन हुए। उसके बाद हमनें भैरों बाबा की चढ़ाई शुरू की जिसके बिना यात्रा को अधुरा माना जाता है। रात को बहुत ही ज्यादा ठंड हो गई थी। हमनें नीचे उतरना शुरू किया। कमरे पर पहुँच कर हमने आराम किया और वापसी के लिए ट्रेन पकड़ी। तीन दिन की इस यात्रा ने हमें बहुत ही सुखद अनुभव दिया जिसे हम कभी नहीं भूल सकते।

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