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Kabir Singh के दोहे
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Explanation:
जिनमे जितनी बुद्धि है, तितनो देत बताय ...
कोई निन्दोई कोई बंदोई सिंघी स्वान रु स्यार ...
दुखिया मुआ दुख करि सुखिया सुख को झूर ...
पाया कहे तो बाबरे,खोया कहे तो कूर ...
हिंदु कहुॅं तो मैं नहीं मुसलमान भी नाहि ...
हिन्दू तो तीरथ चले मक्का मुसलमान ...
अति का भला ना बोलना,अति की भली ना चूप ...
आबत सब जग देखिया, जात ना देखी कोई
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Answer:
kabir singh ke toh pata nhi..but
here u have kabir das ji ke dohe
Explanation:
- मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत | ...
- भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय | ...
- मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ | ...
- शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल | ...
- जब लग आश शरीर की, मिरतक हुआ न जाय | ...
- मन को मिरतक देखि के, मति माने विश्वास | ...
- कबीर मिरतक देखकर, मति धरो विश्वास |
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