"धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय |
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय |"
✯ प्रस्तुत दोहे का भावार्थ लिखो |
Answers
Answer:
कबीर दास ने कहा था "धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।" इसका मतलब है कि मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। ... अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे, तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा! इस दोहे से उन्होंने ये कहने का प्रयास किया है कि हर चीज का एक सही समय होता है।
Explanation:
HOPE IT IS HELPFUL AND PLZ PLZ PLZ MARK IT AS BRAINLIST...
Explanation:
संत कबीर के इस दोहे को समझना आज की जनरेशन के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि आज लोगों में धैर्य न के बराबर होता जा रहा है। कबीर के दोहे धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। में माली और फल को लेकर कबीर ने जिंदगी मे समय के महत्व को समझाने का प्रयास किया है। आसान शब्दों में आप इसे कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि जैसे कि जब किसी छोटे बच्चे का जन्म हो और उसकी मां चाहने लगे कि वह एक महीने में चलने लग जाए तो क्या यह संभव है, बिलकुल संभव नहीं है, जन्म के एक महीने में वास्तव में कोई बच्चा नहीं चल सकता क्योंकि शिशु कै शरीर खड़ा होने में एक महीने के अंदर सक्षम नहीं हो सकता। शिशु को चलने में एक साल का वक्त लगेगा। आप कुछ भी कर ले वह साल भर का होने से पहले चल नहीं सकेगा। मां को धैर्य रखना होगा।
संत कबीर के इस दोहे को समझना आज की जनरेशन के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि आज लोगों में धैर्य न के बराबर होता जा रहा है। कबीर के दोहे धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। में माली और फल को लेकर कबीर ने जिंदगी मे समय के महत्व को समझाने का प्रयास किया है। आसान शब्दों में आप इसे कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि जैसे कि जब किसी छोटे बच्चे का जन्म हो और उसकी मां चाहने लगे कि वह एक महीने में चलने लग जाए तो क्या यह संभव है, बिलकुल संभव नहीं है, जन्म के एक महीने में वास्तव में कोई बच्चा नहीं चल सकता क्योंकि शिशु कै शरीर खड़ा होने में एक महीने के अंदर सक्षम नहीं हो सकता। शिशु को चलने में एक साल का वक्त लगेगा। आप कुछ भी कर ले वह साल भर का होने से पहले चल नहीं सकेगा। मां को धैर्य रखना होगा।
संत कबीर के इस दोहे को समझना आज की जनरेशन के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि आज लोगों में धैर्य न के बराबर होता जा रहा है। कबीर के दोहे धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। में माली और फल को लेकर कबीर ने जिंदगी मे समय के महत्व को समझाने का प्रयास किया है। आसान शब्दों में आप इसे कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि जैसे कि जब किसी छोटे बच्चे का जन्म हो और उसकी मां चाहने लगे कि वह एक महीने में चलने लग जाए तो क्या यह संभव है, बिलकुल संभव नहीं है, जन्म के एक महीने में वास्तव में कोई बच्चा नहीं चल सकता क्योंकि शिशु कै शरीर खड़ा होने में एक महीने के अंदर सक्षम नहीं हो सकता। शिशु को चलने में एक साल का वक्त लगेगा। आप कुछ भी कर ले वह साल भर का होने से पहले चल नहीं सकेगा। मां को धैर्य रखना होगा। समय और धैर्य की प्रबलता को समझने के लिए और अपने निजी जीवन से जुड़ी चीजों पर भी ध्यान दिजिए। यदि आपकी किसी से दोस्ती होती है तो क्या ये दोस्ती एक दिन में गहरी हो जाएगी। अपको अपनी दोस्ती को गहरा बनाने में वक्त लगेगा। धीरे-धीरे आपकी दोस्ती में विश्वास बढ़ेगा और एक समय आएगा जब आप अपनी दोस्ती में बहुत कुछ करने के लिए तैयार हो जाएगें। आप मुश्किल घड़ी में अपने दोस्त को बेझिझक आर्थिक मदद करने के लिए भी तैयार हो जाएगें क्योंकि आपका रिश्ता मजबूद हो चुका है। वहीं अगर आपकी दोस्ती को ज्यादा समय नहीं हुई है और यदि आपसे कोई आर्थिक मदद मांगे तो आपके मन में एक बार संदेह जरूर आएगा क्योंकि आपकी दोस्ती में अभी मजबूती नहीं है। एक अच्छा दोस्त समय और धैर्य के साथ ही बनेगा।
Hope this helps u...mark me as Brainiest...and give THANKS on my answers...please....