Hindi, asked by ankushsaini23, 9 months ago

\huge\boxed{\fcolorbox{red}{pink}{Today's Question}}
मनुष्य मधुर वाणी कब बोलता है| ( not more than 50 words)
कृपया कक्षा 10 के अनुसार जवाब दे|
पाठ-साखी.
\red {Correct \: Answer\: will \: be \: marked \: as \: brainlist.}
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Answers

Answered by urja79
1

हमारी वाणी, सत्य वाणी यानी सन्त वाणी। सन्त कहते हैं-

"तपस्या से आत्मा शुद्ध होती है। इससे पापों का शमन होता है।तपस्या का उद्देश्य सुख प्राप्त करना न होकर अपने जीवन का कल्याण होना चाहिए। तप एक ज्योति है, आत्मा उस ज्योति का केंद्र है। ज्ञान का पदार्पण हो तो जीवन की दिशा बदल जाती है ...।"

वाणी मनुष्य को ईश्वर की अनुपम देन है। वाणी समाज की पारस्परिक मान-मर्यादा, प्रेम-प्रतिष्ठा और श्रद्धा-विश्वास की आधार-स्तम्भ है। हमारी वाणी में मधुरता का जितना अधिक अंश होगा हम उतने ही दूसरों के प्रिय बन सकते हैं।)

हमारी बोली में माधुर्य के साथ-साथ शिष्टता भी होनी चाहिए। हमारी वाणी ही हमारी शिक्षा-दीक्षा, कुल की परंपरा और मर्यादा का परिचय देती है।

मधुर वाणी से मनुष्य, पशु-पक्षी भी प्रिय बन सकते हैं। यह वह रसायन है जिससे लोहा भी सोना बन जाता है, यह वह औषधि है।

कबीरदास जी कहते हैं-

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

मधुर वाणी मनोनुकूल होती है जो कानों में पड़ने पर चित्त द्रवित हो उठता है। वाणी की मधुरता ह्रदय-द्वार खोलने की कुंजी है। मधुर वाणी मनोनुकूल होती है जो कानों में पड़ने पर चित्त द्रवित हो उठता है। वाणी की मधुरता ह्रदय-द्वार खोलने की कुंजी है।

कबीर वाणी सत्य मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है। भक्ति, प्रेम, ज्ञान और सदाचरण द्वारा वह ईश्वर को प्राप्त करने का संदेश दे रहे हैं।

बेगर-बेगर नाम धराये एक माटी के भांडे।

इन्होंने जातिवाद पर प्रहार करते हुए कहा कि मानव उस एक भगवान की संतान है परंतु कोई अपने आपको ऊंची और कोई नीची जाति का कहता है। व्यक्ति तो मिट्टी का बना एक पुतला है।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि।

सब अंधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माहि॥

जीव कहता है कि जब मेरे भीतर ‘अहं’ का भाव था तब तक ईश्वर की प्राप्ति मुझे नहीं हुई। अब ईश्वर से साक्षात्कार हो गया है और मेरे भीतर का अहं समाप्त हो गया। अब अनंत प्रकाश में आत्मस्वरूप को देख लेने से सारा अज्ञान का अंधकार मिट गया

Answered by Anonymous
6

हमारी वाणी, सत्य वाणी यानी सन्त वाणी। सन्त कहते हैं-

"तपस्या से आत्मा शुद्ध होती है। इससे पापों का शमन होता है।तपस्या का उद्देश्य सुख प्राप्त करना न होकर अपने जीवन का कल्याण होना चाहिए। तप एक ज्योति है, आत्मा उस ज्योति का केंद्र है। ज्ञान का पदार्पण हो तो जीवन की दिशा बदल जाती है ...।"

वाणी मनुष्य को ईश्वर की अनुपम देन है। वाणी समाज की पारस्परिक मान-मर्यादा, प्रेम-प्रतिष्ठा और श्रद्धा-विश्वास की आधार-स्तम्भ है। हमारी वाणी में मधुरता का जितना अधिक अंश होगा हम उतने ही दूसरों के प्रिय बन सकते हैं।)

हमारी बोली में माधुर्य के साथ-साथ शिष्टता भी होनी चाहिए। हमारी वाणी ही हमारी शिक्षा-दीक्षा, कुल की परंपरा और मर्यादा का परिचय देती है।

मधुर वाणी से मनुष्य, पशु-पक्षी भी प्रिय बन सकते हैं। यह वह रसायन है जिससे लोहा भी सोना बन जाता है, यह वह औषधि है।

कबीरदास जी कहते हैं-

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

मधुर वाणी मनोनुकूल होती है जो कानों में पड़ने पर चित्त द्रवित हो उठता है। वाणी की मधुरता ह्रदय-द्वार खोलने की कुंजी है। मधुर वाणी मनोनुकूल होती है जो कानों में पड़ने पर चित्त द्रवित हो उठता है। वाणी की मधुरता ह्रदय-द्वार खोलने की कुंजी है।

कबीर वाणी सत्य मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है। भक्ति, प्रेम, ज्ञान और सदाचरण द्वारा वह ईश्वर को प्राप्त करने का संदेश दे रहे हैं।

बेगर-बेगर नाम धराये एक माटी के भांडे।

इन्होंने जातिवाद पर प्रहार करते हुए कहा कि मानव उस एक भगवान की संतान है परंतु कोई अपने आपको ऊंची और कोई नीची जाति का कहता है। व्यक्ति तो मिट्टी का बना एक पुतला है।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि।

सब अंधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माहि॥

जीव कहता है कि जब मेरे भीतर ‘अहं’ का भाव था तब तक ईश्वर की प्राप्ति मुझे नहीं हुई। अब ईश्वर से साक्षात्कार हो गया है और मेरे भीतर का अहं समाप्त हो गया। अब अनंत प्रकाश में आत्मस्वरूप को देख लेने से सारा अज्ञान का अंधकार मिट गया

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