सच्ची मित्रता पर निबंध
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मनुष्य को अपना जीवन बिताने के लिए ईश्वर, माँ-बाप, भाई-बहन और गुरु के अतिरिक्त यदि किसी की जरुरत पड़ती है तो वह है सच्चा मित्र| सभी लोग मित्र नहीं हो सकते| वे केवल साथी और परिचित हो सकते है| हम सभी को एक अच्छे सहयोगी की जरुरत होती है, जिसके साथ हम अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकेँ और यह केवल सच्चे मित्र के साथ ही संभव है|
सच्चे मित्र का जीवन में होने अति आवश्यक है| वह जीवन के सुख-दुःख में हमारा साथ देता है| हमारे हित की कामना करता है| वह मुश्किलों में ढाल बनकर हमारी रक्षा करता है| जब हम निराश होते है तो हममें आशा का संचार करता है| हमारे आँसू पोंछकर वह हमें कर्तव्यपथ की और प्रेरित करता है| वह बहुत भाग्यशाली होते है| जिन्हे सच्चा मित्र मिलता है|
आप सच्चा मित्र किसे कहेंगे ? सच्चा मित्र वही है जो सत्यवादी, कर्तव्यनिष्ठ, कार्य कुशल तथा व्यवहार में ईमानदार होता है| उसमें आडम्बर की भावना नहीं होती| उसमें दृढ़ निश्चय, सहिष्णुता और उदारता की भावना होती है| वह कभी भी अपने मित्र को भूलों और दोषों से नाराज होकर उनसे मुँह फेर लेता| वह मित्र की कमियों को बड़े स्नेह से दूर कर लेता है| मित्र के लिए वह तन, मन, धन सभी कुछ न्योछावर कर सकता है| ऐसा मित्र अपने मित्र की प्रगति को देखकर प्रसन्न होता है| उससे ईर्ष्या नहीं करता| वह अपने मित्र के सामने झूठा दिखावा नहीं करता| दूसरों के सामने उसकी नींदा नहीं करता और न ही निंदा सुनना पसंद करता है| अपने स्वार्थ के लिए उसे नुकसान नहीं पहुँचाता या किसी प्रकार का धोखा नहीं देता| अपने और अपने मित्र के बीच धन-दौलत को कभी आने नहीं देता| यदि उसका मित्र गलती करें तो उसकी गलती सुधारने में मदद करें और उसका उचित मार्गदर्शन करें| आपस में किसी प्रकार का रहस्य न रखें और एक दुसरे पर भरोसा व विश्वास रखें| यदि आपके मित्र में ये सभी बातें है तो आप उसे सच्चा मित्र कह सकते हैं|
यह हमारा दुर्भाग्य है कि बदलती परिस्थितियों, बदलते परिवेश और समय परिवर्तन के साथ मित्र की पहचान भी बदलती जा रही है| आज का युग भौतिकवादी और तुलनावादी है| हर इंसान इस युग में आगे निकल जाना चाहता है| आगे जाने के दौड़ में मानवीय गुणों को भूल जाता है| यही कारण है कि वे अपने मित्रों से भी प्रतियोगिता और ईर्ष्या करता है| कभी कभी उसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है| सच्चे मित्र का चुनाव बड़ी सावधानी से करना चाहिए| अच्छी तरह से उसे परख कर उस गुणों का परिक्षण कर के सच्चे मित्र का चुनाव कीजिए क्योंकि वह आपके जीवन को सुखमय और मधुर बनाने में अपना बड़ा योगदान देते है|
Explanation:
भूमिका : जीवन में प्रगति करने और उसे सुखमय बनाने के लिए अनेक वस्तुओं और सुख साधनों की आवश्यकता पडती है। परंतु एक साधन मित्रता के प्राप्त होने पर सभी साधन अपने आप ही इकट्ठे हो जाते हैं। एक सच्चे मित्र की प्राप्ति सौभाग्य की बात होती है। मित्र वह व्यक्ति होता है जिसे कोई पसंद करे, सम्मान करे और जो प्राय: मिले।
मित्रता वह भावना होती है जो दो मित्रों के ह्रदयों को जोडती है। एक सच्चा मित्र नि:स्वार्थ होता है। वह जरूरत पड़ने पर अपने मित्र की हमेशा सहायता करता है। एक सच्चा मित्र अपने मित्र को हमेशा उचित कार्य करने की सलाह देता है। लेकिन इस विश्व में सच्चे मित्र को ढूँढ़ पाना बहुत कठिन है।मित्रता का अर्थ : मित्रता का शाब्दिक अर्थ होता है मित्र होना। मित्र होने का अर्थ यह नहीं होता है कि वे साथ रहते हो, वे एक जैसा काम करते हों। मित्रता का अर्थ होता है जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शुभचिंतक हो अथार्त परस्पर एक-दूसरे के हित की कामना तथा एक-दूसरे के सुख, उन्नति और समृद्धि के लिए प्रयत्नशील होना ही मित्रता है।
मित्रता का महत्व : मित्रता का बहुत महत्व होता है। जब भी कोई व्यक्ति किसी अन्य के साथ स्वंय को परिपूर्ण समझे, उसके साथ उसकी मुसीबतों को अपना समझे, अपने गमों को उसके साथ बाँट सके। भले ही दोनों में खून का संबंध न हो, जातीय संबंध न हो और न ही इंसानी, सजीवता का संबंध लेकिन फिर भी वो भावनात्मक दृष्टि से उससे जुड़ा हुआ हो यही मित्रता का अर्थ होता है।
एक राइटर को अपने कलम अपनी डायरी से भी वैसा ही लगाव होता है जैसा किसी मित्र से होता है। बचपन में छोटे बच्चों को अपने खिलौने से बहुत लगाव होता है वे उनसे बातें करते हैं, लड़ते हैं जैसे किसी मित्र के साथ उनका व्यवहार होता है वैसा ही व्यवहार वे उस खिलौने के साथ करते हैं।
कई व्यक्ति ईश्वर से भी मित्रता करते हैं। वे सभी ईश्वर से अपने दिल की बातें करते हैं। वे भगवान से अपना सुख-दुःख कहकर अपना मन हल्का करते हैं। ईश्वर में आस्था ही ईश्वर से मित्रता कहलाती है। इन सब बातों का यह मतलब है कि मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो अकेला नहीं रह सकता है। उसे अपने दिल की बात कहने के लिए किसी-न-किसी साथी की जरूरत होती है फिर चाहे वो कोई इंसान हो, जानवर हो या फिर कोई निर्जीव सी वस्तु अथवा भगवान हो।समाज में मनुष्य : मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने की वजह से वह अकेला जीवन यापन नहीं कर सकता है। वह सदैव अपने आस-पास के लोगों से मेल-जोल रखने की कोशिश करता है। हर मनुष्य के जीवन में कई लोग संपर्क में आते हैं और कई लोग सहयोग का आदान-प्रदान भी करते हैं।
लेकिन संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति से प्रेम नहीं हो सकता है। प्रेम केवल उन व्यक्तियों से होता है जिनके विचारों में समानता होती है। ज्यादातर समान आयु, समान विचार, समान उद्योगों के लोगों के साथ ही मित्रता होती है। इसी तरह से मेरे भी उक्त दृष्टी से बहुत से दोस्त हैं। कुछ दोस्त हमारे आस-पास रहने वाले, हमारी उम्र के, और हमारे साथ पढने वाले विद्यार्थी होते हैं। इस तरह से मेरे भी बहुत से दोस्त हैं।
मित्रता अमूल्य है : मित्र बनाना सरल नहीं होता है। एक मनुष्य के अंदर कुछ विशेषताएं होनी जरूरी होती हैं। एक मनुष्य को अपने मित्र पर विश्वास करना चाहिए। एक मित्र को हमेशा अपने मित्र में दोष नहीं निकालने चाहिएँ। सच्ची मित्रता दोनों में ही समान होनी चाहिए। मित्रता का कोई मोल नहीं लगाया जा सकता है।
मित्र बनाना एक कला : मित्र बनाना एक विज्ञान है, मित्रता बनाए रखना भी एक कला होती है। जब मित्र एक-दूसरे के प्रति दयालु और सहनशीलता नहीं रखते हैं तो मित्रता का अंत हो जाता है। मित्रता का उद्देश्य सेवा करवाने की अपेक्षा सेवा करना होना चाहिए। मनुष्य को कोशिश करनी चाहिए कि वह ज्यादा-से-ज्यादा अपने मित्र की सहायता कर सके। मनुष्य को सच्चे और झूठे मित्र में अंतर करना आना चाहिए। एक झूठा मित्र हमेशा अपने स्वार्थ के लिए मित्रता करता है लेकिन ऐसी मित्रता अधिक दिनों तक नहीं टिकती है। ऐसे झूठे मित्रों से हमेशा सावधान रहना चाहिए।
सच्चे मित्र की पहचान : मित्रता आपसी विश्वास, स्नेह और आम हितों के आधार पर एक संबंध है। सच्चे मित्र की पहचान उसके अंदर के गुणों से होती है। जो व्यक्ति आपको सच्चे दिल से प्रेम करता है वहीं एक सच्चे मित्र की पहली पहचान होती है। एक सच्चा मित्र किसी से भी किसी भी बात को नहीं छिपाता है।
एक सच्चा मित्र कभी भी अपने दोस्त के सामने दिखावा नहीं करता है और न ही उससे झूठ बोलता है। एक सच्चे मित्र का विश्वास ही प्रेम का प्रमाधार होता है। एक सच्चा मित्र हमेशा अपने दोस्त को अवगुणों और कुसंगति से हमेशा दूर रहने की प्रेरणा देता है। एक सच्चा मित्र कभी-भी मित्रता में छल-कपट नहीं करता है।
एक सच्चा मित्र, मित्र के दुःख में दुखी और सुख में सुखी होता है। एक सच्चा मित्र हमेशा अपने मित्र के दुखों में अपने दुखों को भी भूल जाता है। एक सच्चा मित्र कभी-भी किसी-भी तरह के जातिवाद को अपने मित्रता के बीच नहीं आने देता है।
उपसंहार : मित्रता एक ऐसा रिश्ता होता है जिसे किसी अन्य रिश्ते से नहीं तोला जा सकता है। अन्य रिश्तों में हम ,शिष्टाचार की भावना से जुड़े होते हैं लेकिन मित्रता में हम खुले दिल से जीवन व्यतीत करते हैं। इसी वजह से मित्र को अभिन्न ह्रदय भी कहा जाता है।
इस खजाने में केवल सदगुण-ही-सदगुण मिलते हैं। जीवन में हमेशा मित्रता, परखने के बाद ही करनी चाहिए। मित्रता केवल पहचान होने से नहीं होती है मित्रता की सुदृढ नींव केवल तभी पडती है जब मित्र की धीरे-धीरे परख की जाती है। जीवन में आवश्यकता के अनेक रूप होते हैं और सच्चा मित्र उन्हें अनेक रूपों में मित्र की सहायता करता है। सच्चा मित्र हमेशा हितैषी होता है।
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