Hindi, asked by Anonymous, 3 months ago

\huge {\boxed {\sf Question \ :}}
︎︎︎ राजनीति पर भाषण लिखिए।
➪ राजनीति के वजह से गरीब लोगों पर होने जाने वाले अन्याय।
➪ भ्रष्टाचारी नेता।
➪ अच्छे नेताओं का फर्ज एवं जिम्मेदारियां.
➪ राजनीति में होने वाले गलत काम।​

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Answered by Anonymous
2

Answer:

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➪1989 में मंडल राजनीति और 1992 के बाद देश में भाजपा के प्रसार में बढ़त होने तक कांग्रेस ब्राह्मण, दलित और अल्पसंख्यक गठबंधन के साथ गरीबी के नारे का पूरा राजनीतिक लाभ लेने में सफल रही। लेकिन मुलायम सिंह, मायावती, लालू यादव, नीतीश कुमार और कल्याण सिंह जैसे नेताओं के उभरने और सामाजिक न्याय की राजनीति के प्रभाव में आने के बाद उत्तार भारत के हिंदी भाषी इलाकों की राजनीतिक संरचना में बदलाव आया। पिछले तीन दशकों में धर्म और जाति के आधार पर हुए ध्रुवीकरण ने चुनावी राजनीति का चेहरा बदल कर गरीबी और आर्थिक विभाजन की राजनीति की प्रासंगिकता को काफी सीमित कर दिया है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण वामपंथी दलों का तेजी से घटता जनाधार है। राजनीति की इस दौड़ में विपक्षी दलों ने भाजपा को गरीब और किसान विरोधी पार्टी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जबकि सच्चाई सबके सामने है कि 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों को सिर्फ जनता की आकांक्षाओं तक ही सीमित रखकर भारी सफलता पाई। यहां यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि मोदी के समक्ष देश का विकास पहली प्राथमिकता है। चूंकि भाजपा को केंद्र की सत्ता में रहते हुए हर साल किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ना है इसलिए मोदी सरकार भी जनता की आकांक्षाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती। यही वजह है कि बजट में एक संतुलित नजरिया रखते हुए वित्तामंत्री अरुण जेटली ने हर वर्ग का ध्यान रखा है। हालांकि इसके बावजूद विपक्ष इसे मोदी सरकार की अमीर समर्थक छवि के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है। सबके लिए पेंशन के तौर पर सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, बचत को प्रोत्साहन और छोटे उद्यमियों के लिए मुद्रा बैंक जैसे उपायों की घोषणा खासतौर पर मध्य और निम्न वर्ग को ध्यान में रखते हुए की गई है। संसद में भाषण और भाजपा सांसदों को दिए गए निर्देशों में मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिनों में भाजपा ने विपक्ष के इन प्रहारों का डटकर जवाब देने और सरकार के आमजन को लाभ देने वाले प्रयासों के प्रचार का मन बना लिया है।

➪भ्रष्टाचार ममाले में दिल्ली से लेकर हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक के शीर्ष कांग्रेस नेताओं के ऊपर सीबीआई, इनकम टैक्स और ईडी जैसी एजेंसियों की तलवार लटकी हुई है। अब भ्रष्टाचार में फंसे अन्य कांग्रेस नेताओं को डर है कि चिदंबरम के बाद कहीं केंद्रीय जांच एजेंसियां उन्हें भी न लपेट लें। चिदंबरम पर सीबीआई की कार्रवाई के बाद कांग्रेस के कई नेता सहमे हुए हैं। हालांकि कांग्रेस अपने नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से इनकार कर रही है और जांच एजेंसियों की कार्रवाई को मोदी सरकार की राजनीतिक प्रतिशोध की वजह बता रही है।

➪देश के किसी भी व्यक्ति के कर्तव्यों का आशय उसके/उसकी सभी आयु वर्ग के लिये उन जिम्मेदारियों से हैं जो वो अपने देश के प्रति रखते हैं। देश के लिये अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की याद दिलाने के लिये कोई विशेष समय नहीं होता, हांलाकि ये प्रत्येक भारतीय नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार हैं कि वो देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझे और आवश्यकता के अनुसार उनका निर्वाह या निष्पादन अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करें।

➪नोटबंदी के जरिए इकॉनमी की सफाई की कोशिशों के बाद राजनीति में भी कुछ सफाई होने की उम्मीद जगी है। ऐसे में ईमानदार युवाओं के लिए भी राजनीति में आने की अच्छी संभावनाएं हो सकती हैं। यूं भी अभी यूपी में विधानसभा और दिल्ली व मुंबई में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव जल्द होने वाले हैं। जाहिर है, चुनाव लड़ने से जुड़ी अहम जानकारी नेता और जनता, दोनों की दिलचस्पी की हो सकती है। चुनाव लड़ने के अहम टिप्स बता रहे हैं ।

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1989 में मंडल राजनीति और 1992 के बाद देश में भाजपा के प्रसार में बढ़त होने तक कांग्रेस ब्राह्मण, दलित और अल्पसंख्यक गठबंधन के साथ गरीबी के नारे का पूरा राजनीतिक लाभ लेने में सफल रही। लेकिन मुलायम सिंह, मायावती, लालू यादव, नीतीश कुमार और कल्याण सिंह जैसे नेताओं के उभरने और सामाजिक न्याय की राजनीति के प्रभाव में आने के बाद उत्तार भारत के हिंदी भाषी इलाकों की राजनीतिक संरचना में बदलाव आया। पिछले तीन दशकों में धर्म और जाति के आधार पर हुए ध्रुवीकरण ने चुनावी राजनीति का चेहरा बदल कर गरीबी और आर्थिक विभाजन की राजनीति की प्रासंगिकता को काफी सीमित कर दिया है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण वामपंथी दलों का तेजी से घटता जनाधार है। राजनीति की इस दौड़ में विपक्षी दलों ने भाजपा को गरीब और किसान विरोधी पार्टी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जबकि सच्चाई सबके सामने है कि 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों को सिर्फ जनता की आकांक्षाओं तक ही सीमित रखकर भारी सफलता पाई। यहां यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि मोदी के समक्ष देश का विकास पहली प्राथमिकता है। चूंकि भाजपा को केंद्र की सत्ता में रहते हुए हर साल किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ना है इसलिए मोदी सरकार भी जनता की आकांक्षाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती। यही वजह है कि बजट में एक संतुलित नजरिया रखते हुए वित्तामंत्री अरुण जेटली ने हर वर्ग का ध्यान रखा है। हालांकि इसके बावजूद विपक्ष इसे मोदी सरकार की अमीर समर्थक छवि के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है। सबके लिए पेंशन के तौर पर सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, बचत को प्रोत्साहन और छोटे उद्यमियों के लिए मुद्रा बैंक जैसे उपायों की घोषणा खासतौर पर मध्य और निम्न वर्ग को ध्यान में रखते हुए की गई है। संसद में भाषण और भाजपा सांसदों को दिए गए निर्देशों में मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिनों में भाजपा ने विपक्ष के इन प्रहारों का डटकर जवाब देने और सरकार के आमजन को लाभ देने वाले प्रयासों के प्रचार का मन बना लिया है।

➪भ्रष्टाचार ममाले में दिल्ली से लेकर हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक के शीर्ष कांग्रेस नेताओं के ऊपर सीबीआई, इनकम टैक्स और ईडी जैसी एजेंसियों की तलवार लटकी हुई है। अब भ्रष्टाचार में फंसे अन्य कांग्रेस नेताओं को डर है कि चिदंबरम के बाद कहीं केंद्रीय जांच एजेंसियां उन्हें भी न लपेट लें। चिदंबरम पर सीबीआई की कार्रवाई के बाद कांग्रेस के कई नेता सहमे हुए हैं। हालांकि कांग्रेस अपने नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से इनकार कर रही है और जांच एजेंसियों की कार्रवाई को मोदी सरकार की राजनीतिक प्रतिशोध की वजह बता रही है।

➪देश के किसी भी व्यक्ति के कर्तव्यों का आशय उसके/उसकी सभी आयु वर्ग के लिये उन जिम्मेदारियों से हैं जो वो अपने देश के प्रति रखते हैं। देश के लिये अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की याद दिलाने के लिये कोई विशेष समय नहीं होता, हांलाकि ये प्रत्येक भारतीय नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार हैं कि वो देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझे और आवश्यकता के अनुसार उनका निर्वाह या निष्पादन अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करें।

➪नोटबंदी के जरिए इकॉनमी की सफाई की कोशिशों के बाद राजनीति में भी कुछ सफाई होने की उम्मीद जगी है। ऐसे में ईमानदार युवाओं के लिए भी राजनीति में आने की अच्छी संभावनाएं हो सकती हैं। यूं भी अभी यूपी में विधानसभा और दिल्ली व मुंबई में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव जल्द होने वाले हैं। जाहिर है, चुनाव लड़ने से जुड़ी अहम जानकारी नेता और जनता, दोनों की दिलचस्पी की हो सकती है। चुनाव लड़ने के अहम टिप्स बता रहे हैं ।

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