Hindi, asked by Missbutterfly, 7 hours ago


\huge\color{navy}{Qᴜᴇsᴛɪᴏɴ:-}
निबंध ​:-

जीवन एक संघर्ष है स्वप्न नहीं :-​

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Answers

Answered by MrsCute2005
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Explanation:

जीवन न तो फूलों की सेज है और न कांटों का ताज ही; अपितु यह तो सुख-दुःख, आशा-निराशा, खुशी-दर्द, आदि का मिश्रण है । स्वप्न देखना या उनमें विचरण करते रहना मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है किंतु जीवन स्वप्न नहीं है, अपितु यह संघर्ष है ।

ये संसार स्वप्न है क्योंकि यह भंगुर है; किंतु बीते हुए कल अर्थात् भूतकाल के स्वप्न जहां शिक्षा प्रदान करते हैं वहीं भविष्य के स्वप्न प्रेरणा प्रदान करते हैं । अत: यह कहा जा सकता है कि ये जगत स्वप्न होते हुए भी निःसार नहीं है ।

हमारे धर्म ग्रंथों में भी कहा गया है कि ब्रह्मा सत्यम्, जगत् सत्यम्, मिथ्या संसार केवलम् अर्थात् जीवन एवं जगत सत्य हैं, उनके सम्बन्ध मिथ्या हैं । दार्शनिक दृष्टिकोण से जगत स्वप्न होते हुए भी निःसार स्वप्न नहीं है ।

व्यवहार में भी सभी स्वप्न व्यर्थ नहीं होंगे । कुछ स्वप्न संदेश देते हैं तो कुछ चेतावनी देते हैं । इस जगत को अपनी कर्मस्थली मानने वाले मनुष्यों के लिए यह सारवान स्वप्न है तो इसे केवल भोगस्थली मानने वाले मनुष्यों के लिए यह निःसार स्वप्न है ।

सपनों की मृग मारीचिका से कोई लाभ नहीं है, उसमें कर्मशीलता की कला चाहिए । अपने कर्तव्यों से विमुख होकर स्वप्नों की इमारत खड़ी करना निरर्थक जीवन का ही लक्षण है । स्वप्नमय जीवन भ्रम मात्र है, जैसे-अंधकार में साधारण रस्सी भी सांप की भांति प्रतीत होती है । जीवन में संशय और भ्रम ही सारहीन स्वप्न बनकर आते हैं ।

जीवन इस भ्रामक स्वप्न लोक में विचरण करके समाप्त करने के लिए नहीं बना है । पुरुषार्थी मनुष्य समय के पृष्ठों पर अपनी छाप छोड़ते हैं और जिसमें पुरुषार्थ नहीं है अर्थात् परिश्रम की क्षमता का अभाव है वह जीवन को कोसता हुआ निःसार जीवन व्यतीत करता है और तर्क-वितर्क में वह अपूर्णता में निष्क्रिय हो जाता है । जीवन को निःसार वही मनुष्य समझता है, जिसने कर्मभूमि को नकारा है ।

मनुष्य का सोचना व तर्क करना गतिशील जीवन है । प्रकृति उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है । जीवन में आने वाली पीड़ा से घबराकर रोने वाला मनुष्य कभी भी सुख के सागर में गोते नहीं लगा सकता । निरंतर उत्साह-उमंग, विश्वास, प्रेम एवं साहस ही जीवन का सार तत्व हैं ।

यह सोच की कर्मठता का ही प्रतीक है । स्वप्न में सोच निःसार है, निरर्थक प्रलोभन है । स्वप्न पूर्ण न होने की स्थिति में विषमता आती है । कष्ट एवं सुख की साम्यावस्था में ही जीवन जीने की कला समाहित है ।

जीवन अतृप्ति में भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है । मृत्यु के भय से आलस्य मत करो क्योंकि मृत्यु तो अटल सत्य है । जो इस नश्वर, क्षणिक, भंगुर संसार में आया है उसे तो एक दिन मरना ही है तो मृत्यु से भय कैसा । इस प्रकार यदि मृत्यु अनिवार्य है तो जीवन यथार्थ है ।

यदि जीवन निःसार होता तो अन्न, फल-फूल, आदि न होते और न ही आशा-लतिका होती । जीवन में आशा है और ऐसा भी नहीं है कि संसार मिथ्या है । जीवन से विरक्त होकर स्वप्न संसार की कल्पना करना सर्वथा व्यर्थ है ।

जीवन की वृत्ति स्वप्न की भांति असत्य नहीं है । सपने अल्पकालीन और परिवर्तनशील होते हैं । सपने व्यक्तिगत होते हैं, जिनकी अनुभूतियां स्थिर नहीं होतीं । सपने कोरे प्रतिभास मात्र हैं । जीवन व्यवहार है, जिसमें सत्य समाहित है । जीवन सारहीन प्रतीत होता है, किंतु इसकी प्रगति सद्‌गुणों पर निर्भर करती है । जीवन साधना का क्षेत्र है । ऊपरी समुद्र को सूक्ष्म में उतारा जाए तो रहस्य की प्राप्ति होगी।

स्थूल दृष्टि से जीवन एक खिलवाड़ लगता है । निर्वाह-जुटाने, गुत्थी सुलझाने और माथा-पच्ची करते-करते मृत्यु निकट आ जाती है । ऐसे में जीवन निःसार प्रतीत होता है । लगता है कि हमने व्यर्थ ही जन्म लिया और निरर्थक जीवन का यापन किया । किंतु जीवन की ऊपरी परत तक सोचने वाला मनुष्य ही इस प्रकार की बातें करता है ।

मनुष्य के शरीर में बीज रूप में अथवा कहा जा सकता है कि छिपी हुई अपरिमेय शक्ति है, जिसे पहचानकर काम में न लाया गया तो जीवन की बहुमूल्यता की इति हो जाएगी । जीवन चेतन है; जिसमें आनन्द है, उल्लास है । बाह्य जीवन सुव्यवस्थित एवं अंतरंग परिष्कृत हो तो जीवन दुःखद नहीं है, आवश्यकता है तो बस पात्रता की।

सुयोग्य और पात्र मनुष्य के लिए जीवन सारस्वरूप है । बिना परिश्रम और मूल्य चुकाए वह कुछ नहीं लेता । वह याचना नहीं करता क्योंकि वह जानता है कि याचक को निम्न-से-निम्न स्तर की ही वस्तु प्राप्त होती है । भौतिक व्यवस्था मात्र यही है और कर्मफल का विधान भी यही है ।

जीवन एक निर्झर है जो मनुष्य के भीतर से, उसके अंतःकरण से फूटकर समतल में आता है । समुद्र में विलीन होकर भी पुन: जल मेघ के रूप में आता है । जीवन का सार केवल उसी को प्राप्त होता है, जो श्रम-सीकर से स्वयं को सींचता है ।

सपने लुभावने, मोहक अथवा भयानक होने पर आधारविहीन होते हैं और यदि आधार होता भी है तो वह कुंठा एवं दमित इच्छाओं से बना हुआ होता है । मोह एवं भय जीवन को निःसार बनाते हैं, अत: इन्हें स्वप्नों के साथ सम्बद्ध नहीं करना चाहिए । जीवन यदि स्वप्न मात्र होता तो न तो ग्रह-नक्षत्र अपनी धुरी पर होते और न ही जीवन चक्र चलता ।

सांसारिक जीवन में अनेक सत्य हैं, जिनकी पहचान करनी है । जीवन कर्तव्य पथ है । मार्ग में आने वाले शूलों को देखो और मंजिल की ओर बाढ़ों । जीवन एक निःसार स्वप्न नहीं है अपितु यह पृथ्वी पर स्वर्ग से अवतरित करने की परिकल्पना करने वाला स्वप्न है, तब वह भला निःसार किस प्रकार हो सकता है ?

Answered by ms4809856
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Jeevan ek Sangharsh ka sabse achcha udharan Mahatma Gandhi hai kyunki jab unhone angrejo se ladai ki tabiyat mere Bharat ko azadi Mili

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