जीवन एक संघर्ष है स्वप्न नहीं :-
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जीवन न तो फूलों की सेज है और न कांटों का ताज ही; अपितु यह तो सुख-दुःख, आशा-निराशा, खुशी-दर्द, आदि का मिश्रण है । स्वप्न देखना या उनमें विचरण करते रहना मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है किंतु जीवन स्वप्न नहीं है, अपितु यह संघर्ष है । ... अत: यह कहा जा सकता है कि ये जगत स्वप्न होते हुए भी निःसार नहीं है ।
जीवन न तो फूलों की सेज है और न कांटों का ताज ही; अपितु यह तो सुख-दुःख, आशा-निराशा, खुशी-दर्द, आदि का मिश्रण है । स्वप्न देखना या उनमें विचरण करते रहना मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है किंतु जीवन स्वप्न नहीं है, अपितु यह संघर्ष है ।
ये संसार स्वप्न है क्योंकि यह भंगुर है; किंतु बीते हुए कल अर्थात् भूतकाल के स्वप्न जहां शिक्षा प्रदान करते हैं वहीं भविष्य के स्वप्न प्रेरणा प्रदान करते हैं । अत: यह कहा जा सकता है कि ये जगत स्वप्न होते हुए भी निःसार नहीं है ।
हमारे धर्म ग्रंथों में भी कहा गया है कि ब्रह्मा सत्यम्, जगत् सत्यम्, मिथ्या संसार केवलम् अर्थात् जीवन एवं जगत सत्य हैं, उनके सम्बन्ध मिथ्या हैं । दार्शनिक दृष्टिकोण से जगत स्वप्न होते हुए भी निःसार स्वप्न नहीं है ।
व्यवहार में भी सभी स्वप्न व्यर्थ नहीं होंगे । कुछ स्वप्न संदेश देते हैं तो कुछ चेतावनी देते हैं । इस जगत को अपनी कर्मस्थली मानने वाले मनुष्यों के लिए यह सारवान स्वप्न है तो इसे केवल भोगस्थली मानने वाले मनुष्यों के लिए यह निःसार स्वप्न है ।
सपनों की मृग मारीचिका से कोई लाभ नहीं है, उसमें कर्मशीलता की कला चाहिए । अपने कर्तव्यों से विमुख होकर स्वप्नों की इमारत खड़ी करना निरर्थक जीवन का ही लक्षण है । स्वप्नमय जीवन भ्रम मात्र है, जैसे-अंधकार में साधारण रस्सी भी सांप की भांति प्रतीत होती है । जीवन में संशय और भ्रम ही सारहीन स्वप्न बनकर आते हैं ।