अपने प्रिय साहित्यकार के बारे में चर्चा करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।
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हिंदी के प्रसिद्ध लेखक निर्मल वर्मा के पत्रों से जुड़ी मेरी पहली स्मृति 2005 के आख़िरी दिनों की है. स्कूल हाल ही में ख़त्म हुआ था और यूनिवर्सिटी के पहले साल के साथ-साथ निर्मल के पहले उपन्यास 'वे दिन' का भी जीवन में आगमन बस हुआ ही था.
तभी भोपाल में बड़ी झील के किनारे ऊँघती हुई सी एक सर्द दुपहरी को एक मित्र ने मुझे पारदर्शी कवर से झांकता हुआ एक पुराना पत्र दिखाया. बारीक काली स्याही से लिखे बड़े-बड़े फैले अक्षरों से बने कुछ 15 वाक्यों का यह पत्र, निर्मल जी ने लिखकर दिल्ली से भोपाल अपने एक पाठक को भेजा था.
दरअसल उनके पाठक और मेरे इस मित्र ने उनका उपन्यास 'अंतिम अरण्य' पढ़कर, उन्हें 15 पन्नों का एक लंबा पत्र लिखा था, जिसके जवाब में निर्मल जी का यह 15 वाक्य लंबा ख़त आया था.
ख़तों में दर्ज बातों की स्मृति अब धुंधला सी गई हैं लेकिन इतना याद है कि वह असाधारण उपन्यास पढ़ कर पाठक ने उनसे जीवन की जटिलताओं से जुड़े कुछ प्रश्न किए थे, जिसके जवाब में निर्मल जी ने नए सवालों का एक विस्तृत क्षितिज पाठक के सामने खोल दिया था.
वह पत्र लेखक और पाठक के बीच के स्पेस और संबंघ से मेरा पहला परिचय था. किताबें पढ़कर लेखक को ख़त लिखे जा सकते हैं और उनके जवाब भी आते हैं- यह बात मेरे लिए जितने विस्मय और कौतुहल का विषय थी उतनी ही खुशी की भी.
PLS MARK ME AS BRAINLIEST...
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