Pulwama Attack Essay in hindi.
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मैं एक आम भारतीय हूं। मैं अपने देश की सेना का अथाह सम्मान करती हूं। मैं राजनीति नहीं जानती। मैं जानती हूं कि मेरे देश के जवान मेरे देश की सुरक्षा करते हैं लेकिन मैं पूछना चाहती हूं कि उनकी सुरक्षा कौन करता है?
वीरों की तरह वे सामने से किए आक्रमण का सामना करते हुए शहीद होने के हकदार थे, इस तरह किसी घिनौनी सोच के नीच,कायराना और पतित षडयंत्र का शिकार होकर नहीं...
मैं पूछना उनसे भी चाहती हूं जो हमले की जिम्मेदारी लेते हैं..। भला 'जिम्मेदारी' कैसी? इस जिम्मेदारी शब्द के मायने मेरे भारत में कितने खुलते हैं, जानते हैं आप? जिम्मेदारी शब्द के साथ कितने कर्तव्य जुड़े हैं, जानते हैं? बेशर्मी से हमले की जिम्मेदारी लेते हैं? शर्म नहीं आती इस तरह छल, कपट और चोरों की तरह हमला करते हुए?
सामने से आते तो चकनाचूर हो जाते यह बात आप भी जानते हैं....इस समय सरकार पर, विपक्ष पर, प्रशासन
पर, सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाने का समय नहीं है पर मेरे जैसी औसत बुद्धि के मन में भी इतने सवाल तो स्वाभाविक रूप से उमड़-घुमड़ रहे हैं कि इतनी चाक-चौबंद व्यवस्था के बावजूद, सुरक्षा एजेंसियों की चेतावनियों के बावजूद, लगातार मिल रही धमकियों के बावजूद यह कैसे और क्यों कर संभव हुआ?
जब मेरे देश के जवान देश और देश में रहने वालों की सुरक्षा पर इस तरह न्योछावर होते हैं तो मैं कभी-कभी आत्मग्लानि से भर जाती हूं कि क्या वाकई हम इस 'लायक' हैं कि हमारे लिए देश की इतनी अनमोल जान चली जाए? अपनी क्षुद्र सोच से हम कभी उबर नहीं पाते हैं, हमारी सारी मानवता पत्थरबाजों को लेकर उमड़ती है...अपने देश के लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सत्ता को अपशब्द कहने में हम पीछे नहीं हटते, हमारे लिए क्या
बेहतर है यह गहराई से जाने बगैर देश की राजनीति पर लंबी-लंबी बहस को जन्म देते हैं, हम जो काश्मीर समस्या के 'कारणों' पर कोई कार्यवाही नहीं चाहते हैं पर चाहते हैं कि समस्या का हल हो जाए...
कहां से हल निकलेगा? आसमान से आएगा या धरती से फूटेगा? पड़ोसी देश के प्रति अपनी तमाम 'कलात्मक भावुकताएं' अर्पित करने वाले हम नहीं जानते हैं कि समस्या का असली कारण वहीं से जन्मा है पर हमें तो बुद्धिजीवी होने के 'लाल कीड़े' ने काट रखा है जो चाहे इस देश का खून चूस ले पर उसका बारीक सा पंख भी नहीं कटना चाहिए.. इस वक्त कहां है वह गैंग जो 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' के नारे चीखने वालों की वकालात कर रही थीं?
निहायत ही स्वार्थी और निर्मम हो चले हैं हम...हमें अपनी सोच, अपने आचरण, अपने विचारों को भी खंगालना चाहिए देश इन्हीं सबसे जुड़कर रत्ती-रत्ती होकर बनता है...चाहे सोशल मीडिया हो या चौराहे की बहस अपने विचारों और भावनाओं को लेकर कितने गंभीर हैं हम, यह सवाल अपने आप से पूछने का वक्त है...देश की एकता को छिन्न-भिन्न करने के विचार अगर आपके मन में भी पलते हैं, अगर आप भी मैं, मेरा, मेरा परिवार, मेरा शहर, मेरी जाति, मेरा धर्म, मेरा संप्रदाय, मेरा राज्य, 'मेरा आरक्षण' से ऊपर उठकर नहीं सोच पाते हैं तो माफ कीजिएगा कोई अधिकार नहीं इस मौके पर किसी भी तरह की कोरी भावुकता को परोसने का...44 का आंकड़ा उठाकर देख लीजिए यह सिर्फ आंकड़ा नहीं है हमारे गौरव, सपनों और अरमानों का खून है...
इनमें कोई हिन्दू, मुस्लिम, जैन, ब्राह्मण,क्षत्रिय,
कश्मीरी, पंजाबी नहीं थे ... वे सब एक थे, एक था उनका धर्म और एक था उनका जज्बा...आज उनकी एक ही पहचान है कि वे देश की सच्ची संतान थे.. हम सेना में नहीं जा सकते पर करोड़ों मन एक साथ एक स्वर में यह तो कह सकते हैं कि मेरा देश पहले है, मैं बाद में...
देश की रक्षा करने वालों की 'रक्षा' कौन करेगा? हम, हमारे विचार, हमारी भावनाएं, हमारे हौसले, हमारी संवेदनाएं...हमारी एकता, हमारी अखंडता...हमारी मजबूती...
mark me as brainlist.
एहतियात के तौर पर श्रीनगर में डेटा स्पीड को घटाकर 2जी स्तर का कर दिया गया. गुरुवार को पुलवामा ज़िले में हुए फिदायीन हमले में सीआरपीएफ के तकरीबन 40 जवान शहीद हो गए थे.
जम्मू कश्मीर के पुलवामा ज़िले का अवंतिपुरा, जहां बीते 14 फरवरी को सीआरपीएफ के जवानों पर आतंकी हमला हुआ. (फोटो: पीटीआई)
जम्मू/श्रीनगर: कश्मीर घाटी में पुलवामा ज़िले में हुए भीषण आतंकी हमले पर व्यापक प्रदर्शनों और हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बाद एहतियाती कदम के तौर पर जम्मू शहर में शुक्रवार को कर्फ्यू लगा दिया गया.
गुरुवार को हुए इस फिदायीन हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए.
अधिकारियों ने बताया कि सेना ने कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने में प्रशासन की मदद करने का अनुरोध किया और फ्लैग मार्च किया.
अधिकारियों ने बताया कि सांप्रदायिक हिंसा की आशंका के चलते कर्फ्यू लगाया गया है. लाउडस्पीकरों पर कर्फ्यू लागू होने की घोषणा होने के बाद भी प्रदर्शनकारी लौटे नहीं, खासतौर से पुराने शहर में.
जम्मू के पुलिस उपायुक्त रमेश कुमार ने बताया, ‘हमने एहतियाती क़दम के तौर पर जम्मू शहर में कर्फ्यू लागू कर दिया है.’
अधिकारियों के अनुसार, जम्मू शहर पूरी तरह बंद है और सड़कों पर कोई वाहन नहीं है. सभी दुकानें और बाज़ार बंद हैं.
जम्मू शहर में ज्यूल चौक, पुरानी मंडी, रेहारी, शक्तिनगर, पक्का डंगा, जानीपुर, गांधीनगर और बक्शीनगर समेत दर्जनों स्थानों पर लोगों ने पाकिस्तान के विरोध में सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किए.
कुछ खबरों के मुताबिक, गुज्जर नगर इलाके में झड़पें हुईं और पथराव के कारण कुछ वाहन क्षतिग्रस्त हुए. हालांकि पुलिस ने कार्रवाई करते हुए बड़ी झड़प होने से रोक दी.
ख़बरों के अनुसार, पाकिस्तान विरोधी, आतंकवादी विरोधी नारे लगाते हुए प्रदर्शनकारियों ने कई सड़कों पर टायर फूंके. प्रदर्शनकारियों ने बदले की मांग करते हुए सड़कों को अवरुद्ध कर दिया. बजरंग दल, शिवसेना और डोगरा फ्रंट के नेतृत्व में लोगों ने शहर में कैंडल मार्च निकाला और पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन किए.
जम्मू चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (जेसीसीआई) ने बृहस्पतिवार को आतंकवादी हमले का विरोध करते हुए जम्मू में बंद का आह्वान किया था.
पुलवामा हमले का विरोध करते हुए जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय बार संघ ने उच्च न्यायालय और अधिकरणों समेत जम्मू में सभी अदालतों में काम स्थगित कर दिया.
बार संघ, जम्मू के अध्यक्ष बीएस सलाठिया ने कहा, ‘पुलवामा हमले में सीआरपीएफ जवानों की शहादत के सम्मान में और शोक संतप्त परिवारों के प्रति एकजुटता एवं संवेदना जताने के लिए संघ ने कामकाज स्थगित कर दिया है.’