दो अपठित गद्यांश class 7
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Answer:
1 . एक जंगल में परिजात का एक पेड़ था। परिजात का कोई मुकाबला नहीं था। उसकी सुंदरता बेजोड़ थी। उसका रंग-रूप निराला था। परिजात को भी अपने गुणों का पूरा-पूरा पता था। नीले आसमान में सिर उठाए इस शान से खड़ा रहता, मानों पेड़ों का सरताज हो। जब बहार के दिन आते तो परिजात अनगिनत नन्हें-नन्हें फूलों से लद जाता, लगता मानों किसी ने आकाश से सारे तारे तोड़कर परिजात की शाखाओं पर टाँक दिए हो। नन्हें फूलों से झिलमिलाता परिजात जब सुगंध भरी पराग जंगल में बिखेरता तो जंगल नंदन बन जाता। चुंबक की तरह परिजात सबको अपनी तरफ़ खींचता, जिसे देखो, वही परिजात की तरफ़ भागता । सतरंगी शालें ओढ़े चटकीली तितलियाँ सहेलियों के साथ झुंड का झुंड बनाकर परिजात का श्रृंगार देखने आतीं तथा जाते-जाते फूलों को खींचकर ढेरों पराग अपने साथ ले जाती।
Explanation:
2.बढ़ती जनसंख्या ने अनेक प्रकार की समस्याओं को जन्म दिया है- रोटी, कपड़ा, मकान की कमी, बेरोजगारी, निरक्षता, कृषि एवं उद्योगों के उत्पादनों में कमी आदि। हम जितना अधिक उन्नति करते हैं या विकास करते हैं जनसंख्या उनके अनुपात में कहीं अधिक बढ़ जाती है। बढ़ती जनसंख्या के समक्ष सभी सरकारी प्रयास असफल दिखाई देते हैं। कृषि उत्पादन और औद्योगिक विकास बढ़ती जनसंख्या के सामने नगण्य सिद्ध हो रहे हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या वृधि पर नियंत्रण की अति आवश्यकता है। इसके बिना विकास के लिए किए गए सभी प्रकार के प्रयत्न अधूरे रह जाएँगे।
Answer:
अपठित गद्यांश 1
बहुत समय पहले, एक मनुष्य न अकस्मात दो पत्थरों को इकट्ठा कर रगड़ा और आग पैदा की | इस प्रकार उसने एक लाभदायक खोज की ; परन्तु हम इस मनुष्य का नाम नहीं जानते है | मनुष्य एक बेघर बिचरनेवाला प्राणी था जो कि अपने खाने की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान जाता रहता था | किसी खेती-बाड़ी की खोज की | इससे मनुष्य के रहने के ढंग में एक महान परिवर्तन आया | अब उसे भोजन की खोज में इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं थी | काफी समय के पश्चात किसी ने पहिये का आविष्कार किया | आजकल साइकिलें, कारे तथा बसें ऐसे प्रयोग में लाते है |
अपठित गद्यांश 2
प्राचीन काल में जनक महाराज विदेह में राज्य करते थे | मिथिला विदेह की राजधानी थी | मिथिला नगरी में राजमहल आस-पास कोई एक हजार संन्यासियों की पर्णकुटियाँ थी | मिथिला के सिंहासन पर बैठने पर भी महाराज जनक को फकीरी का शौक था | कहा जाता है कि महाराज जनक ज्ञानी थे | वे इस पढ़ राज काज चलते थे, मनो स्वयं परमात्मा के विनयशील सेवक है | सुबह से सायं तक सरे राज्य का प्रबंध करते, शत्रुओं का पता करते, अपराधी को दण्ड देते, लोक-कल्याण के उपाय करते और इतना सब कुछ करने पर भी वे किसी सांसारिक कार्य में लिप्त नहीं होते थे | इसलिए लोग उनको विदेह जनक कहते थे|