दो बैलों की कथा में पश्चिमी देशों में भारतीयों की दुर्दशा का क्या कारण बताया है
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आपका उत्तर :- प्रेमचंद्र ने अपनी कहानी दो बैलों की कथा में पश्चिमी देशों में भारतीयों की दुर्दशा का कारण बताया है , कि भारतीयों का प्राचीनतम स्वभाव एक जैसा है और भारतीय जहां भी जाते हैं वहां कमाते हैं और उसमें से २ पैसे काट कर भविष्य के लिए रख देते हैं और बाकी के पैसों से अपनी गुजारा करते हैं और अपनी जीविका चलाते हैं
बड़े लेखकों की रवां लिखाई को हल्के में लेना हमारे समाज के लिए आम बात है। प्रेमचंद की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ नीचे की कक्षाओं में लगी हुई मिलती है। हल-बैल बच्चों के जीवन से जैसे-जैसे बाहर जा रहे हैं, वैसे-वैसे उनके लिए इसको समझना भी मुश्किल होता जा रहा है लेकिन असल समस्या बड़ों के साथ है जो इसे पशुप्रेम के सरल नैतिक उपदेश के रूप में खुद भी ग्रहण करते हैं और यही घुट्टी बच्चों को भी पिलाते हैं। इस कहानी का उर्दू रूप ‘दो बैल’ है और रेख्ता की साइट पर इसका हिंदी अनुवाद उपलब्ध है। ‘दो बैलों की कथा’ और ‘दो बैल’ को अगल-बगल रखकर पढ़ें तो दोनों में कुछ मोटे फर्क नजर आते हैं। एक तो यह कि हिंदी वाली कहानी दो-तीन पैरा लंबी है। उसमें शुरू में ही अफ्रीका और अमेरिका में भारतीयों की दुर्दशा को लेकर एक पॉलिटिकल स्टेटमेंट है जो उर्दू में नदारद है।
ज्यादा बड़ा फर्क यह कि उर्दू में हीरा और मोती तकरीबन एक-से बैल हैं जबकि हिंदी में अति सहनशील हीरा के मुकाबले मोती का एक गुस्सैल, प्रो-ऐक्टिव कैरक्टर है। इसमें एक-डेढ़ पैरा उन घटनाओं पर भी खर्च किए गए हैं जिनसे मोती का किरदार निखरता है। मसलन, अपने मालिक झूरी के साले के यहां से दूसरी बार भागने के बाद एक मटर के खेत में जी भर चर लेने के बाद बैल आपस में धौल-धप्पा करते हैं और ठेला-ठेली में अपना पैर जरा सा पीछे चले जाने की खुन्नस में मोती लड़ाई को लंबी खींचने लगता है। बाद में कांजीहाउस की दीवार तोड़ने की कोशिश ‘दो बैल’ में हीरा-मोती दोनों को पगहा पड़वाती है जबकि ‘दो बैलों की कथा’ में पहले सिर्फ हीरा बांधा जाता है। मोती के हिस्से यह दुर्गति दीवार पूरी तोड़ देने के बाद भी दोस्त के साथ खड़ा रहने के कारण आती है। कहानी के दोनों रूपों में इस फर्क का क्या कोई मतलब है?
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