दो भिखारी Ek Andha dusra langda ki kahani
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एक छोटे से शहर में एक नुक्कड़ पर दो भिखारी रहते थे, उनमे से एक लंगड़ा था और दूसरा अँधा। दोनों भीख मांग कर अपना गुजारा करते थे। चुकी दोनों के पेशा एक ही था, इसीलिए दोनों एक दुसरे से सहानभूति ना रखकर प्रतिद्वंदिता रखते थे। दोनों दिन भर भीख मांगते और रात को पास ही बांकी झोपड़ी में सो जाते। एक रात जब वो सोने की तयारी ही कर रहे थे की अचानक उनके झोपड़े में अचानक आग लग गयी। दोनों भिखारी बहुत घबरा गए। अंधे को कुछ दिख नहीं रहा था पर उसके पैर ठीक थे और वो रास्ता दिखने पर वहां से निकल सकता था वहीँ लंगड़ा सब कुछ देखकर भी भाग नहीं पा रहा था क्यूंकि उसके दोनों ही पैर बेकार थे। इस संकट की घडी में दोनों को एक दुसरे की जरुरत थी पर फिर भी कोई भी पहल नहीं कर रहा था दोनों किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए थे और अपनी मौत का इंतजार कर रहे थे।
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