दंडकरण ने ऋषि मुनियों की क्या दिशा थी
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भारत का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी की हमारी इस पृथिवी की आयु व इस पर प्राणी जीवन है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार पृथिवी का निर्माण होकर इस पर आज से 1,96,08,53,115 वर्ष पहले मनुष्यों की उत्पत्ति वा उनका आविर्भाव हुआ था। सृष्टि की उत्पत्ति के पहले ही दिन ईश्वर ने बड़ी संख्या में अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न स्त्री-पुरुषों में से चार सबसे अधिक पवित्रात्माओं अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को एक-एक वेद का ज्ञान दिया था। यह वेद ज्ञान सभी सत्य विद्याओं की पुस्तकें हैं। ईश्वर चेतन तत्व व सर्वव्यापक होने के कारण सृष्टि के समस्त ज्ञान व विद्याओं का आदि स्रोत है। उसने अपनी उसी ज्ञान, विद्या व सामर्थ्य से जड़ व कारण प्रकृति से इस संसार को बनाया है और चला भी रहा है। हमारे वैज्ञानिक उसके उस ज्ञान व नियमों की सृष्टि की रचना का अध्ययन कर खोज करते हैं। इस ज्ञान का उपयोग कर ही नाना प्रकार के जीवन रक्षा व सुविधा के यन्त्र, उपकरण व मशीनों आदि का निर्माण संसार में हुआ है। हमारा आज का यह ज्ञान विज्ञान कोई बहुत पुराना नहीं है। आज यदि चार व पांच शताब्दी पीछे देखें तो यूरोप में ज्ञान विज्ञान के बुनियादी नियमों की खोज भी नहीं हुई थी। इशाक न्यूटन, इंग्लैण्ड (25 दिसम्बर 1642 – 20 मार्च, 1726), आकर्मिडीज (Archimedes, Greek, 287-212 BC), गैलीलियो, इटली (15 फरवरी 1564-8 जनवरी 1642) जैसे वैज्ञानिक विगत 500 से लेकर 2300 वर्षों के अन्दर ही हुए हैं। इससे पूर्व यूरोप सहित सारे विश्व में विज्ञान से रहित मनुष्य जीवन का अनुमान लगाया जा सकता है। दूसरी ओर महाभारत युद्ध के समय भारत की राजव्यवस्था पर विचार करते हैं तो देखते हैं कि हमारा देश धन-धान्य, वैभव व वैज्ञानिक उन्नति से सुसमृद्ध था। महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ कर स्वयं को चक्रवर्ती राजा घोषित ही नहीं अपितु उसे अपने बल व पराक्रम से सिद्ध भी किया था। उन दिनों हमारे पास आधुनिक हथियार थे जिनके नाम ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र आदि थे। श्रीकृष्ण जी के पास एक अद्भूद अस्त्र “सुदर्शन चक्र” था जिसकी विशेषता थी कि इसे जिस व्यक्ति का वध करने के लिए छोड़ा जाता था, यह उसका वध करके पुनः श्रीकृष्ण जी के पास लौट आता था