Hindi, asked by aryiantanwar542, 16 hours ago

दिए गए बिंदु के आधार पर मेरी इच्छा पर एक अनुच्छेद लिखो​

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Answered by prakarsh3543
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बुद्धिमान और इच्छा-प्रधान होने के कारण ही मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। स्वभावत: मनुष्य मात्र इच्छा प्रधान ही नहीं, बल्कि महत्वाकांक्षी होता है। सभी की अपनी-अपनी इच्छा-आकांक्षांए रहा करती हैं। विचित्र-विशेष।

Answered by arushi788880
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बुद्धिमान और इच्छा-प्रधान होने के कारण ही मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। स्वभावत: मनुष्य मात्र इच्छा प्रधान ही नहीं, बल्कि महत्वाकांक्षी होता है। सभी की अपनी-अपनी इच्छा-आकांक्षांए रहा करती हैं। विचित्र-विशेष। सभी की तरह ही मेरी जीवकांक्षा भी बड़ी अदभुत है। अदभुत ही नहीं वह रोमांचकारी भी है। यदि मुझे छह मास की छुट्टी मिल जाए और दस-बीस हजार रुपए मिल जांए, तो मैं अपनी उस अकांक्षा को पूर्ण करने का प्रयत्व करना चाहता हूं। वह जीवनाकांक्षा है हिमालय-दर्शन।

उत्तरी सीमांचल का निर्माण करने वाला हिमालय संसार का सबसे ऊंचा पर्वत है। हमारा परम सौभाज्य है कि वह हमारे देश ही में स्थित है। मेरे मन में तरंगे उठती रहती हैं कि मैं एक बार अपनी आंखों से उसे आदि से अन्त तक देखूं। एकदम निकट से देखूं और अपनी आकांक्षापूर्ति का सुख भोगूं।

हिमालय की लंबाई 1500 मील और चौड़ाई प्राय: 150 मील है। माऊंट एवरेस्ट उसकी सबसे ऊंची चोटी है। यही नहीं, एवरेस्ट ही संसार की सबसे ऊंची चोटी भी है। इसकी अन्य चोटियां हैं कंचनजंगा, कामेट,्र नन्दादेवी, नंगा पर्वत आदि। छोटी-मोटी चोटियों की तो गिनती ही नहीं।

हिमालय का हर एक शिखर अपनी आंखों से देखने के स्वप्न मेरे मन में छाये रहते हैं। वे मुझे नित्य आमंत्रित करते रहते हैं। हिमखंडित शिखरों को अपने नयनों से देखने की कल्पना मात्र से मुझे रोमांच हो जाता है। कल्पनाओं में मेरी चेतना वहीं मंडराती रहती है।

हिमालय की चोटियां, उपत्यकांए, झरने, नदी-नाले, ऊंचे वृक्ष, भयंकट घाटियां, बियाबान जंगल तथा हिस्त्र पशु-सकुल वन अपनी आंखों से देखने को जी चाहता है। चाहता हूं कि उसी का एक अंग बन हमेशा उसे देखता और उसकी समीपता पाता रहूं।

हिमालय पर अनेक नगर भी बसे हुए हैं। उन सबको देखकर नयन और मन को तृप्त करने की लालसा मेरे मन में हमेशा उठती रहती है। मैं हिमालय-दर्शन केवल पद-यात्रा करके पूर्ण करने की कामना करता हूं। हिमालय पर स्थित प्रसिद्ध नगर हैं श्रीनगर, जम्मू, शिमला, कुल्लू मंडी, चंबा, डलहौजी, मसूरी, श्रीनगर, गढ़वाल, नैनीताल, अल्मोड़ा, दार्जिलिंग, गंगटोक, कंचनजंगा, काठमंडू आदि। जैसे सभी मुझे अपना आहवान करते हुए प्रतीत होते हैं। इन सबकी रम्यता के बारे में पढ़-पढक़र तो मेरा मन हर समय वहीं पहुंचा रहता हे।

ओह वह दिन कब आएगा, जबकि मैं इन सबको देख पाऊंगा ओर अपने मित्रों को इन नगरों की शोभा का वर्णन सुना सकूंगा। उनमें से कुछ नगर तो मैं देख भी चुका हूं। परंतु मैं तो सभी एक बार की यात्रा के क्रम में देखने की अकांक्षा करता हूं ताकि उसकी गरिमा का एक समग्र चित्र बन सके। मेरी इच्छा एक साथ साकार हो सके।

हिमालय में सतलुज, व्यास, रावी, जेहलम, सिंधु, गंगा-यमुना, ब्रह्पुत्र आदि अनेक बड़ी नदियां निकलती हैं। अगणित छोटी नदियां भी हिमालय से निकलती हैं। मेरे मन में रह-रहकर यह इच्छा उठती रहती है कि मैं इन सबके निकास को अपनी आंखों से देखूं। इन नदियों के तटों पर उगे बड़े चीड़, देवदार, अमलतास, कैल, कैथ आदि नान प्रकार के वृक्षों को देखकर अपने नयन तृप्त करने को मेरा मन तरसता है। मेरी अकांक्षा है कि बादाम, अखरोट, नेवजा, सेब, नाशपाती, खुबानी के पेड़ों और बागों को देखूं। केसर की क्यारियों को देखूं और सूर्योदय के समय पिघली चांदी वाले हिमशिखरों को निहारूं, सूर्यास्त के समय पिघले स्वर्ण वाले हिमशिखरों की शोभा निहारकर उस लीलामय की अदभुत लीला का गुणगान करूं। जाने कब पूरी होगी मेरी अकांक्षा।

हिमालय भारमाता का मुकुट है। इस मुकुट के एक-एक मोती, अर्थात भाग को एक साथ देखने की मेरी कामना है। इस पद-यात्रा में संभव है कि मैं किसी खड्ड में, किसी हिमनद में या किसी खाई में गिर पड़ूं, संभव है कि मैं किसी तेज नाखूनों वाले सिंह या बाघ के पंजे का शिकार बन जाऊं, या संभव है कहीं सर्दी से शरीर जम भी जाए, बिवाइयां फट जांए, या शरीर थकान से चूर-चूर हो जाए। संभव है कहीं सर्दी से शरीर जम भी जाए,। परंतु मुझे इन बातों का तनिक भी भय नहीं। हिमालय दर्शन मेरे जीवन का एक रोमांचकारी मधुर स्वप्र है। जो मेरे मन से नहीं जाता। यदि मुझे ऐसा सौभाज्य मिला, तो मैं अपनी यात्रा का संपूर्ण वृतांत एक पुस्तक के रूप में लिखूंगा। अपने जीवन का धन्य, सफल ओर सार्थक मानूंगा। दूसरा के लिए उदाहरण ओर प्रेरणा भी प्रस्तुत कर सकूंगा। जाने कब पूरी हो पाएगी यह महत्वकांक्षा।

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