दिए गए चित्र पर आधारित कहानी लिखिए 8m
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एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. वो बहुत ही भूखी थी. वह अपनी भूख मिटने के लिए भोजन की खोज में इधर– उधर घूमने लगी. उसने सारा जंगल छान मारा, जब उसे सारे जंगल में भटकने के बाद भी कुछ न मिला, तो वह गर्मी और भूख से परेशान होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई. अचानक उसकी नजर ऊपर गई. पेड़ पर एक कौआ बैठा हुआ था. उसके मुंह में रोटी का एक टुकड़ा था.
कौवे के मुंह में रोटी देखकर उस भूखी लोमड़ी के मुंह में पानी भर आया. वह कौवे से रोटी छीनने का उपाय सोचने लगी. उसे अचानक एक उपाय सूझा और तभी उसने कौवे को कहा, ”कौआ भैया! तुम बहुत ही सुन्दर हो. मैंने तुम्हारी बहुत प्रशंसा सुनी है, सुना है तुम गीत बहुत अच्छे गाते हो. तुम्हारी सुरीली मधुर आवाज़ के सभी दीवाने हैं. क्या मुझे गीत नहीं सुनाओगे ?
कौआ अपनी प्रशंसा को सुनकर बहुत खुश हुआ. वह लोमड़ी की मीठी मीठी बातों में आ गया और बिना सोचे-समझे उसने गाना गाने के लिए मुंह खोल दिया. उसने जैसे ही अपना मुंह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया. भूखी लोमड़ी ने झट से वह टुकड़ा उठाया और वहां से भाग गई.
यह देख कौआ अपनी मूर्खता पर पछताने लगा. लेकिन अब पछताने से क्या होना था, चतुर लोमड़ी ने मूर्ख कौवे की मूर्खता का लाभ उठाया और अपना फायदा किया.
सीख: यह कहानी सन्देश देती है कि अपनी झूठी प्रशंसा से हमें बचना चाहिए. कई बार हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं, जो अपना काम निकालने के लिए हमारी झूठी तारीफ़ करते हैं और अपना काम निकालते हैं. काम निकल जाने के बाद फिर हमें पूछते भी नहीं.
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एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहती थी. एक दिन वह भोजन की तलाश में जंगल में भटक रही थी. लेकिन दिन भर भटकने के बाद भी उसे भोजन नसीब नहीं हुआ. वह थक कर चूर होकर एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए बैठ गई.
जिस पेड़ के नीचे बैठकर वह सुस्ता रही थे, ठीक उसके सामने वाले पेड़ पर कुछ देर बाद एक कौवा आकर बैठ गया. कौवा कहीं से रोटी का एक टुकड़ा अपनी चोंच में दबाकर लाया था. लोमड़ी ने जब कौवे को देखा, तो उसकी नज़र रोटी के टुकड़े पर ठहर गई.
रोटी का टुकड़ा देखकर लोमड़ी के मुँह में पानी आ गया. उसकी भूख दुगुनी हो गई. वह सोचने लगी कि काश ये रोटी का टुकड़ा मुझे मिल जाए, तो मज़ा आ जाये. लेकिन रोटी का वह टुकड़ा तो कौवे के चोंच में दबा था. वहीं बैठे-बैठे लोमड़ी अपना दिमाग दौड़ाने लगी, ताकि किसी तरह रोटी के उस टुकड़े को हासिल कर सके.
कुछ देर में उसके दिमाग में एक उपाय आ गया. उपाय दिमाग में आते ही वह उस पेड़ के नीचे पहुँची, जहाँ कौवा बैठा था. ऊपर मुँह कर वह कौवे की प्रशंषा के पुल बांधते हुए बोली, “कौवे भाई! तुम कितने सुंदर दिखते हो. तुम्हें पता है कि तुम इस विश्व के सबसे सुंदर पक्षी हो. तुम जैसा तो कोई भी नहीं.”
अपनी प्रशंषा सुनकर कौवा खुशी से फूला नहीं समाया. किंतु वह मौन रहा. लोमड़ी ने अपने प्रयास में कोई कमी नहीं आने दी. वह कौवे की तारीफों में बड़ी-बड़ी बातें करती रही. धीरे-धीरे कौवा लोमड़ी की बातों में आने लगा. लेकिन अब भी वह चुप था.
तब लोमड़ी अपना आखिरी दांव फेंकते हुए बोली, “कौवे भाई! तुम्हारी आवाज़ का तो कहना ही क्या? वह तो बहुत सुरीली है. क्या मुझे ये सौभाग्य प्राप्त होगा कि मैं तुम्हारा गाना सुन सकूं.”
अपनी आवाज़ की तारीफ़ सुनकर कौवे से रहा न गया. वह ख़ुशी से झूमने लगा.
लोमड़ी फिर से बोली, “एक बार अपनी मीठी आवाज़ में गाना सुना दो कौवे भाई. इतनी देर से मैंने तुम्हारे गाने की प्रतीक्षा में यहाँ खड़ी हूँ.”
ये सुनना था कि गाना सुनाकर लोमड़ी से और तारीफें बटोरने की इच्छा में कौवा भूल गया कि उसके मुँह में रोटी का टुकड़ा है. गाना गाने के लिए उसने अपना मुँह खोल दिया. फिर क्या था? उसका मुँह खुलते ही रोटी का टुकड़ा मीचे गिर पड़ा. लोमड़ी तो इसी ताक में थी. झट से उसने रोटी का वह टुकड़ा लपक लिया और वहाँ से चलती बनी. कौवा देखता रह गया.