Hindi, asked by ramlaljaiswal626224, 3 months ago

दिए गए गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए गौधन गजधन बाजिधन और रतन सब खान जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान

Answers

Answered by shishir303
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गो-धन, गज-धन, वाजि-धन और रतन-धन खान।

जब आवत संतोष-धन, सब धन धूरि समान।।

संदर्भ-प्रसंग ➲ यह दोहा तुलसीदास द्वारा रचित दोहा है। इस दोहे के माध्यम से तुलसीदास ने संतोष संबंधी नैतिक शिक्षा देने का प्रयत्न किया है।

व्याख्या ➲ तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य के पास भले ही गाय रूपी धन हो, हाथी रूपी धन हो, घोड़ा रूपी धन हो, रत्न रूपी धन का अथाह भंडार हो, तो उस पर अपार धन-वैभव संपत्ति हो, लेकिन वह कभी संतुष्टि नहीं पा सकता। जब तक उसके पास संतोष रूपी धन नहीं आ जाता, अन्य किसी प्रकार का भी धन उसके लिए धूल-मिट्टी के समान है। संतोष ही सबसे बड़ा धन है, संतोष के बिना किसी भी धन से सुख नहीं प्राप्त हो सकता।

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