दिए गए संकेत बिन्दुओं के आधार पर निम्नलिखित विषय पर लगभग 300 शब्दों में एक सारगर्भित निबंध लिखें-
(क) लॉकडाउन में ऑनलाइन पढाई
संकेत बिंदु-
*भूमिका, *ऑनलाइन पढाई की आवश्यकता, *इसके लाभ *इससे हानियाँ * उपसंहार
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Answer:
कोविड-19 के बाद आपके बच्चों की पढ़ाई कैसे हो पाएगी?
लक्ष्य सोनी
27 जून 2020
इलस्ट्रेशन
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सैकत बताते हैं, "पूरी संभावना है कि हमारे अगले सेमेस्टर के इम्तिहान ऑनलाइन हों. हमने छात्रों को कोर्स मैटेरियल ऑनलाइन दे दिया है. साइंस के विद्यार्थियों के लिए यह थोड़ा चुनौती भरा है, क्योंकि इनमें लैब में जाकर प्रयोग करने पड़ते हैं."
स्कूल और यूनिवर्सिटी यह भी विचार कर रहे हैं कि खुलने के बाद वे किस तरह से काम करेंगे.
सामाजिक दूरी अहम होगी और शैक्षिक संस्थानों को यूरोप, दक्षिण कोरिया और चीन के अनुभवों से सबक लेना पड़ेगा.
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स्कूलों की जगह नहीं ले सकती ऑनलाइन पढ़ाई
कुछ अन्य स्कूलों ने छात्रों के बिल्डिंग या कक्षा में प्रवेश के दौरान उनका तापमान लेना अनिवार्य बना दिया है. लेकिन, भारत जैसे सामाजिक और आर्थिक विविधता वाले देश में अलग-अलग छात्रों को देखते हुए शिक्षा का भविष्य शायद कुछ अलग रहेगा.
ऑनलाइन शिक्षा भले ही एक नया ट्रेंड बनकर उभर रही है, लेकिन हाशिए पर मौजूद बच्चों के लिए किस तरह से इसे मुमकिन बनाया जाएगा?
अनुराधा बताती हैं, "कई लड़कियों के लिए स्कूल अपने घर की मुश्किल भरी ज़िंदगी से एक आज़ादी की तरह से थी. सीखने के अलावा, स्कूल में दोस्त बनते हैं, बातचीत होती है और मिड-डे मील भी मिलता है. ये सब चीज़ें अब ख़त्म हो गई हैं."
नौ साल की रानी राजपूत दिल्ली के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ती हैं. उनकी मां राधा राजपूत ने बीबीसी को बताया कि जब से लॉकडाउन लागू हुआ है, तब से उनकी बेटी घर पर खाली बैठी है.
राधा कहती हैं, "हम काम की तलाश में यूपी से दिल्ली आए थे. मेरे पति ऑटोरिक्शा चलाते हैं और मैं लोगों के घर पर घरेलू कामकाज करती हूं. हमें पता चला है कि बड़े स्कूल कंप्यूटर पर कक्षाएं ले रहे हैं."
"लेकिन, हमारे पास तो स्मार्टफ़ोन तक नहीं है. स्कूल के बंद होने के बाद से हमें कोई सूचना नहीं मिली है. मेरी बेटी एक कमरे के घर में सारा दिन रहते-रहते परेशान हो गई है."
"मेरे स्कूल में कुल 380 छात्राएं हैं. इनमें से ज़्यादातर बेहद ग़रीब परिवारों से आती हैं. इनके मां-बाप के पास स्मार्टफोन नहीं हैं और इन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई की ज़्यादा चिंता भी नहीं है."
छाया का कहना है कि ऐसे परिवारों के बच्चों के लिए महामारी एक बड़ी मुश्किल बनकर सामने आई है. इनके बच्चों का पूरा एक साल ख़त्म हो सकता है या फिर पढ़ाई के लंबे-वक्त के मौके भी ख़त्म हो सकते हैं.
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स्कूलों को खुद को प्रासंगिक बनाने के तरीके ढूंढने होंगे
24 साल के आनंद प्रधान भारत के ऐसे सबसे युवा शिक्षाविद हैं जिन्होंने अपने मूल राज्य ओडिशा में इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल ऑफ रूरल इनोवेशन की नींव रखी है.
वो मानते हैं कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में स्कूलों को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए खुद को पूरी तरह से दोबारा खड़ा करना पड़ेगा.
वो कहते हैं, "ऑनलाइन शिक्षा अब एक हकीकत है. ऐसे में स्कूलों को यह सोचना पड़ेगा कि वे किस तरह से बच्चे की ज़िंदगी में अपना योगदान दे सकते हैं."
आनंद के स्कूल में स्किल डिवेलपमेंट और इनोवेटिव सोच पर खास ज़ोर दिया जा रहा है. छात्र वैज्ञानिक खेती, आंत्रप्रेन्योरशिप और डिज़ाइन सोच जैसी प्रैक्टिकल स्किल सीख रहे हैं.
"हम स्किल्ड लोग तैयार करना चाहते हैं जो कि किसी समस्या को समझ सकें और अकेले बूते इसका हल निकाल सकें."
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न केवल छात्र, बल्कि शिक्षकों के लिए भी है चुनौती
शिक्षा के भविष्य की एक और तस्वीर हरियाणा के रोहतक ज़िले में दिखाई देती है. यहां पर बिजेंदर हुड्डा की टीम काम कर रही है.
बिजेंदर मेहम ब्लॉक में ब्लॉक लेवल एजूकेशन अफ़सर के तौर पर काम कर रहे हैं. वो अपने शिक्षकों के नेटवर्क के ज़रिए डिजिटल खाई को पाटने की कोशिश कर रहे हैं.
वो कहते हैं, "हम व्हाट्सएप के जरिए अधिकतम छात्रों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. हम उन्हें वीडियो और ऑडियो ट्यूटोरियल भेज रहे हैं."
लेकिन, बिजेंदर इस बात की ओर इशारा करते हैं कि ग़रीब परिवारों से आने वाले अधिकतर बच्चों के मां-बाप काम पर चले जाते हैं और फ़ोन अपने साथ ले जाते हैं. ऐसे बच्चे केवल शाम के वक्त ही फ़ोन पर ऑनलाइन ट्यूटोरियल पढ़ पाते हैं.
"हम रात में देर तक काम करते हैं ताकि उनके सवालों को हल किया जा सके. हमारे शिक्षक भी ऑडियो और वीडियो का इस्तेमाल करना सीख रहे हैं. यह काफी थकाऊ है, लेकिन हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है."
बिजेंदर की टीम ने दूध पाउडर और मिड-डे मील की कच्ची सामग्री के वितरण के वक्त गांव के हर बच्चे की शैक्षिक स्थिति का सर्वे किया है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में इस तरह की चुनौतियां मौजूद रहेंगी चाहे स्कूल कितना ही बड़ा या छोटा क्यों न हो. शिक्षा एक क्रांति के दौर से गुज़र रही है और हम देखेंगे कि किस तरह से यह लंबी अवधि में बच्चों पर असर डालती है.
नाम : लक्ष्य सोनी