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निम्नलिखित गांश को पढकर पूह
प्रश्नों के
प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षकदर
उत्तर पीजिय
Answers
Answer:
Bhai esa par lo
Explanation:
(1) शीर्षक–अवतरण का शीर्षक जहाँ तक हो सके लघु (छोटा) तथा उपयुक्त होना चाहिए। शीर्षक में अवतरण का समस्त भाव परिलक्षित होना नितान्त आवश्यक है। शीर्षक के लिए गद्यांश के प्रारम्भिक एवं आखिरी अंश का चिन्तन एवं मनन करना चाहिए।
(2) सारांश परीक्षा में अवतरण का सारांश अथवा भाव लिखने को आता है। सारांश छोटा तथा सारगर्भित होना चाहिए। इसमें अपनी भाषा का प्रयोग करना परमावश्यक है। अवतरण की भाषा को ज्यों का त्यों लिखना वर्जित है। भाषा का परिमार्जित होना जरूरी है।
सार-लेखन में पूछे गये अवतरण का ही भाव परिलक्षित होना चाहिए। सारांश का कलेवर एक तिहाई से किसी भी दशा में अधिक नहीं होना चाहिए।
(3) प्रश्नोत्तर–प्रश्नों के उत्तर लघु तथा सारगर्भित होने चाहिए। अवतरण के आधार पर ही उत्तर देने चाहिए। अनर्गल उत्तर देना वर्जित है। प्रश्नोत्तरों की भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए।
MP Board Class 10th Special Hindi अपठित गद्यांश
प्रश्न-
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
1. मन के सशक्त होने पर शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है। यदि मन दुर्बल है तो शरीर निष्क्रिय और निरुद्यम ही रहेगा। यह संसार शक्तिशाली का है। दुर्बल का इस संसार में कहीं ठिकाना नहीं। कायर व्यक्ति मृत्यु से पहले ही सहस्रों बार मरता है। कायरता का सम्बन्ध मन से है। कायरता और निरुत्साह का दूसरा नाम ही मन की हार है। परिणामत: मन की हार अत्यन्त भयंकर है। मनुष्य भाग्य का निर्माता है, पर कायर पुरुष नहीं। सबल ही भाग्य निर्माता की सामर्थ्य रखता है। कायर तो दैव-दैव ही पुकारता है। साहसी व्यक्ति को अपने मानसिक बल पर अभिमान होता है।
प्रश्न-
(1) इस अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(2) इस अवतरण में भाग्य का निर्माता किसे कहा गया है?
(3) इस अवतरण का सारांश 30 शब्दों में दीजिए।
(4) मन के सशक्त होने पर शरीर में क्या होता है?
उत्तर-
(1) शीर्षक-‘मनोबल’।’
(2) मानव को स्वयं अपने भाग्य का निर्माता कहा गया है।
(3) सारांश-मन का सबल एवं पुष्ट होना सबसे बड़ी ताकत है। मन के दुर्बल होने पर मानव भीरु (कायर) बन जाता है। ऐसे व्यक्ति का दुनिया में जीवित रहना अथवा न रहना एकसमान है। अतः मन को सशक्त बनाओ तथा अपने भाग्य की सृष्टि (निर्माण) करो।
(4) मन के सशक्त होने पर शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है।
2. क्षमा पृथ्वी का गण-धर्म है। क्षमा वीरों का भूषण है। मनुष्य से स्वाभाविक रूप से अपराध होते रहते हैं,गलतियाँ होती रहती हैं। हमारी दृष्टि में कोई अपराधी है तो हम भी किसी की दृष्टि में अपराधी हैं। यहाँ निर्दोष कोई भी नहीं है, इसलिए परस्पर क्षमा-भावना की अति आवश्यकता है। क्षमा के अभाव में क्रोध, हिंसा, संघर्ष का साम्राज्य छा जायेगा जिसे कोई भी स्वीकार नहीं करता है। माता-पिता, गुरु सभी क्षमाशील होते हैं। मानव जीवन में क्षमा के अवसर आते रहते हैं। क्षमा के अभाव में जीवन चलना दूभर हो जाता है। अहिंसा, करुणा, दया, मैत्री, क्षमा आदि दैवीय गुण हैं। ये गुण मानव-जीवन के लिए आवश्यक हैं।