दिए से मिटेगा न मन का अंधेरा कविता की व्याख्या
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जबतक आप स्वयं नहीं सुधरने और अपनी बुराइयों को स्वयं नहीं छोड़ ने का प्रयाश करेंगे आप चाहे जितना गंगा जी में स्नान कर ले आपकी बुराइयों नहीं दूर होंगी यही है
दिए से न मिटेगा मन का अँधेरा
अगर आप किसी के बारे में गलत सोचते हैं आप चाहे उसके सामने चाहे जितन शो ऑफ करले आपके मन का अँधेरा दिए से नहीं मिटेगा
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jagi Hui stri ka nirdharan jagi Hui stri ka nirdharan
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