Chemistry, asked by patelsahilpatel1234, 4 months ago

दूंगी बाबूजी जब खुशी मिलती है तब दुकानदार कुर्सी में से कुछ नहीं पूछता सिर्फ खरीददार को दिखलाता दिखा देता है पसंद आ गई तो अच्छा है वरना इसके अर्थ बताइए​

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Answered by shishir303
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क्या जवाब दूं, बाबूजी, जब कुर्सी-मेज बिकती है, तब दुकानदार कुर्सी मेज से कुछ नहीं पूछता, सिर्फ खरीददार को दिखलाता दिखा देता है पसंद आ गई तो अच्छा है, वरना...

‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी के मुख्य पात्र उमा के द्वारा कहे गए इस कथन का असली अर्थ यह हैस कि माता पिता अपनी बेटी की जब कहीं शादी तय करते हैं तो सिर्फ लड़के वाले को लड़की दिखा देते हैं और दहेज प्रथा के इस कारोबार में सौदेबाजी हो जाती है। यहाँ पर लड़की का पिता विक्रेता है और लड़के का पिता खरीददार, जो अपने बेटे के लिए बहू की दहेज के एवज में सौदेबाजी करता है। यहां पर लड़की की इच्छा का कोई महत्व नहीं। उमा ने दुकानदार, खरीददार और कुर्सी-मेज का उदाहरण देकर अपनी व्यथा कहने की कोशिश की है।

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