Hindi, asked by khushibatra35, 2 months ago

'दंगी मालकिला" गयी की चाबी रोती हई, दोनों हाथों से औचल पाको
दादी माँ के पैरों की ओर की "बिटिया की शादी है। आप नया काही तो
गरीब देगी कभी।"
वपके से आँगन की ओर चला गया। कई दिन बीत गए, इस प्रसंग को
एकदम मूल सा गया। एक दिन रास्ते में गमी की चाबी मिली। वह दादी को 'पता
फलो दूधो नहाओ' का आशीर्वाद दे रही थी। मैं जा "क्या बात है
हमारी मालकिन का। कल ही आई थी। पीछे का सभी रूपया होड दिया ऊपर
किशन या की शादी ठीक हई दादी माके उत्साह और आनद का बया
कहना। दिनभर गायब रहता। सारा पर जैस उन्होंने सर पर उठा लियाहा। पड़ोसिम
आती। बहुत लाने पर दादी माँ आती "बहिन बरा न मानना। कार परोजनका
घर ठहरा। एक काम अपने हाथ सनकर तो होनेवाला नहीं।" जानने कापा
सभी जानते थे कि दादी माँ कुछ करती नहीं। पर किसी काम में
दिस पाँच के लिए साईन हो।' देवता है बेटा देवता।"
'उस रोज तो बहुन डौट रही थी?" मैने पूछा।
'वह तो बड़े लोगों का काम है बाथ रुपया देकर डॉर पीपली लाच वया"
मैं मन ही मन उस तर्क पर हमला हुआ आगे बढ़ गया।
किशन के विवाह के दिनों की बात है। विवाह के चार पाँच रोज पहले से
ही और रात रातभर गीत गाती है। विवाह की रात को अभिनय भी होता है। यह
प्राय: एक ही कथा का हुआ करता है, उसमें विवाह से लेकर पुपाल्पति तक के
सभी दृश्य दिखाए जाते हैं सभी पार्ट औरतें ही करती है। मैं बीमार होने के कारण
बारात में न जा सका। मेरा ममेरा माई राघव दालान में
जाने के बाद पहँचा था)। औरतों ने उस पर आपत्ति की।
दादी माँ बिगड़ी "लड़के से क्या परदा? लड़के और बरह्मा का मन एक-सा
होता है।"
अनुपस्थिति वस्तुत: विलंब का कारण बन जाती। उन्हीं दिनों की बात है।
दिन दोपहर को मैं चार लौटा। बाहरी निकसार में दादी माँ किसी पर बिगड र
रुपये मय सूद के आज दे दे। तेरी आँख में तो शरम है नहीं। माँगने के समय केशी
आई थी। पैरों पर नाक रगड़ती फिरी किसी ने एक पाई भी न दी। अब लगी।
आजकाल करने फसल में दूंगी, फसल में दूँगा... अब क्या तेरी खातिर दूसरा
थी। देखा पास के कोने में दुबकी रामी की चाची खड़ी है। "सान होगा, पनोर chhota karke Apne shabdon mein likho​

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Answered by sagnik921
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