दोहे का अतार्थ बताये!
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1. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
अर्थ : सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का।
2. तिनका कबहुंँ ना निंदिये, जो पावन तर होय
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
अर्थ : जिस प्रकार पैरों के नीचे पड़ा रहने वाला तिनका अगर उड़कर आंखों में पड़ जाए, तू वही तिनका बहुत पीड़ादायक होता है; ठीक उसी प्रकार हमें भी किसी निर्बल व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए।
3. कुटिल वचन सबते बुरा, जारि करै सब छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।।
अर्थ : इस दोहे का अर्थ है की कटु वचन बहुत बुरे होते हैं, दुनिया में सबसे पूरे कठोर वचन ही होते हैं और उनकी वजह से पूरा बदन जलने लगता है जबकि मधुर वचन जल की तरह शीतल होते हैं और जब बोले जाते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत बरस रहा है।
4. कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन।।
अर्थ : स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँद तो एक ही हैं, पर उसके गुण अलग-अलग तीन तरह के देखे जाते हैं। कदली में पड़ने से, कहते हैं कि, उस बूंद का कपूर बन जाता है। ओर, अगर सीप में वह पड़ी तो उसका मोती हो जाता है। साँप के मुहँ के में गिरने से उसी बूँद का विष बन जाता है। इसलिए जैसी संगत में बैठिएगा, वेसा ही उसका परिणाम होगा।
5. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए टूटे मुक्ताहार।।
अर्थ : इस दोहे से कवि का यह आशय है कि यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए, जिस प्रकार यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए ।
6. बिगरी बात बनै नाहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
अर्थ : जिस प्रकार फटे हुए दूध को कितना भी मथ दो माखन नहीं निकलता, ठीक उसी प्रकार, जो बात एक बार बिगड़ जाती है, उसको लाख बार सुधारने पर भी सही नहीं होती।
7. रहिमन निज संपति बिना, कोई न विपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।
अर्थ : जिस प्रकार पानी न रहने पर कमल को सूखने से सूर्य बचा नहीं सकता; ठीक उसी प्रकार, काम अपनी ही सम्पत्ति आती है, कोई दूसरा विपत्ति में सहायक नहीं होता है।