दोहों का भावार्थ लिखिए-
पग-धुंघरू बाँध मीरा नाची रे।
मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
लोग कहैं मीरा भई बावरी, न्यात कहैं कुल नासी रे।
विष का प्याला राणाजी भेज्या, पीवत मीरा हाँसी रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर सहज मिले अबिनासी रे
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मीरा अपने पैरों मे घुंघरू बांध नाचती हैं, वे प्रभु की दासी हो गई, लोग कहते हैं वे पागल हो गई। रिश्तेदार उनको कुलनाशी कहते हैं, राणा ने उनके लिए विष भेजा जिसे वह हंसते हुए पी गई, मीरा के प्रभु अविनाशी हैं जो उन्हें सहज ही प्राप्त हो गए हैं।
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