दोहे (काव्य)
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपुहि सीतल होय।।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय।।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका छाड़ि दे, मन का मनका फेर ॥
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछिताय।।
बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहाँ ते खाय।।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) वाणी बोलते समय मन का आपा खोने का क्या अर्थ है?
(ख) सच्चा जप कौन-से मोती की माला फेरने पर होगा?
(ग) गुरु और गोविंद को एक साथ देखकर कवि के मन में क्या प्रश्न आता है?
(घ) प्रेम को जानकर व्यक्ति क्या बन जाता है?
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क . हमे बोलते समय आपा खोना मतलब है कि हमे बात करते समय अपने अहंकार को बीच में नहीं लाना चाहिए ।
ख. अच्छे विचारों की माला फेरने से ।
ग पहले किसके पैर छू क्योंकि प्रभु और गुरु एक समान होते है
घ ज्ञानी बन जाता है
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