देह से जान जा चुकी थी । शहर की काया बेजान थी " इस कथन में किस शहर की बात की जा रही है
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जब वे अपने प्यारे लखनऊ से विदा ले रहे थे तो बहुत सारे लोग विलाप करते हुए कानपुर तक उनके पीछे गए थे। नवाब के निष्कासन से पैदा हुए दुख और अपमान के इस व्यापक अहसास को उस समय के बहुत सारे प्रेक्षकों ने दर्ज किया है। एक ने लिखा था : “देह से जान जा चुकी थी। शहर की काया बेजान थी...।
देह से जान जा चुकी थी, शहर की काया बैजान थी, इस कथन में लखनऊ शहर की बात की जा रही है।
व्याख्या :
लॉर्ड डलहौजी द्वारा अवध रियासत का अधिग्रहण करने से अवध रियासत के लोगों में गहरा असंतोष व्याप्त था। अवध उस समय उत्तर भारत की शान था और वहां के नवाब वाजिद अली शाह वहां का लोकप्रिय शासक था। अंग्रेजों ने वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाकर तत्कालीन कलकत्ता भेज दिया और यह कहकर अवध की सत्ता पर कब्जा कर लिया कि वाजिद अली शाह ठीक से नहीं शासन चला पा रहे थे और वह वहां लोकप्रिय नहीं था। मगर सच इसके विपरीत था। वाजिद अली शाह को लोग दिल से चाहते थे। जब वह अपने प्यारे लखनऊ शहर को छोड़कर लोगों से विदा ले रहे थे तो लोग रोते हुए उनके पीछे पीछे जा रहे थे। किसी ने कहा कि देह से जान जा चुकी थी, शहर की काया बेजान थी। उस समय लोगों को वाजिद अली शाह का इस शहर से जाना अच्छा नहीं लग रहा था।