दीजिए.
मुझे मानव जाति की दुर्दम-निर्मम धारा के हजारों
वर्षका रुप साफ दिखाई दे रहा है। मनुष्य की जीवनी -
शक्ति वडी निर्मम है वह समहा और संस्कृति के धामोहो
को रौदही चली आ रही है न जाने कितने धर्माचारों,
विश्वासों उसवों और ब्रतो को धोती-बहाती मह जीवन-धाश
आगे बटी है संघर्षों से मनुष्य ने शक्ति पाई है। हमारे
सामने समाज का आज जो रूप है, वह न जाने कितने
ग्रहण और त्याग का रुप है
1- उपरोक्त गोश का सन्दर्भ लिखिए
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