ठीक है। इससेलक्ष्मी केदो-चार दिन निकल जाएँगे।’’
‘‘आखिर इस तरह कब तक चलेगा ?’’ रमजानी दुखी स्वर मेंबोली ।
‘‘तुम इसेखुला छोड़कर, आजमाकर तो देखो ।’’
‘‘कहतेहो तो ऐसा करकेदेख लेंगे।’’
दूसरे दिन रहमान सवेरेआठ-नौ बजेकेकरीब लक्ष्मी को इलाकेसेबाहर जहाँनाला बहता है, जहाँझाड़-
झंखाड़ और कहीं दूब केकारण जमीन हरी नजर आती है, छोड़ आया ताकि वह घास इत्यादि खाकर अपना कुछ
पेट भर ले। लेकिन माँ-बेटेको यह देखकर आश्चर्यहुआ कि लक्ष्मी एक-डेढ़ घंटेबाद ही घर केसामनेखड़ी थी ।
उसकेगलेमेंरस्सी थी । एक व्यक्ति उसी रस्सी को हाथ मेंथामेकह रहा था-‘‘यह गाय क्या आप लोगों की है?’’
रमजानी नेकहा, ‘‘हाँ।’’
‘‘यह हमारी गाय का सब चारा खा गई है। इसेआप लोग बाँधकर रखेंनहीं तो काँजी हाउस मेंपहुँचा देंगे।’’
रमजानी चुप खड़ी आगंतुक की बातेंसुनती रही ।
दोपहर बाद जब करामत अली ड्यूटी सेलौटा और नहा-धाेकर कुछ नाश्ते के लिए बैठा तो रमजानी उससे
बोली-‘‘मेरी मानो तो इसेबेच दो ।’’
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