था कौन कि जिसने बचपन में
अंग्रेजों के कोड़े खाये ?
"उस परमवीर को जीते - जी
अंग्रेज़ न हाथ लगा पाए।"
Answers
Answer:
Vasudev balwant phadke
Explanation:
वासुदेव बलवन्त फड़के
वासुदेव बलवंत फड़के का जन्म 4 नवंबर, 1845 को महाराष्ट्र के रायगड जिले के शिरढोणे गांव में हुआ था.
- ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले फड़के भारत के पहले क्रांतिकारी थे. - उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की विफलता के बाद आज़ादी के महासमर की पहली चिनगारी जलाई थी.
- प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनके पिता चाहते थे कि वह एक दुकान पर काम करें, लेकिन उन्होंने पिता की बात नहीं मानी और मुंबई आ गए.
- उन्होंने जंगल में एक अभ्यास स्थल बनाया, जहां ज्योतिबा फुले और लोकमान्य तिलक भी उनके साथी थे. यहां लोगों को हथियार चलाने का अभ्यास कराया जाता था. - 1871 में उनको सूचना मिली की उनकी मां की तबियत खराब है, उन दिनों वो अंग्रेजों की एक कंपनी में काम कर रहे थे. वो अवकाश मांगने गए, लेकिन नहीं मिला.
- अवकाश नहीं मिलने के बाद भी फड़के अपने गांव चले गए, लेकिन तब तक मां की मृत्यु हो चुकी थी. इस घटना ने उनके मन में अंग्रेजों खिलाफ गुस्सा भर दिया.
- फड़के ने नौकरी छोड़ दी. अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की तैयारी करने लगे. उन्हें आदिवासियों की सेना संगठित करने की कोशिश शुरू कर दी.
- 1879 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी. पैसे एकत्र करने के लिए कई जगहों पर डाके भी डालने शुरू किए.
- महाराष्ट्र के सात जिलों में वासुदेव फड़के का प्रभाव फैल चुका था. उनकी गतिविधि से अंग्रेज अफसर डर गए थे. कहा जाता है कि अंग्रेज उनसे थर-थर कांपते थे.
मगर कभी भी अंग्रेज उन्हें गिरफ्तार नहीं केर पाए