दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है?
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उत्तर : मकबूल दुकान पर बैठने के बाद भी ड्राइंग तथा पेंटिंग करने में अपना सारा ध्यान लगाता था। वह गल्ले का जबानी हिसाब रखता था। इसके साथ वह अपने आसपास व्याप्त जीवन को 20 स्केचों में उकेरता था। इस तरह वह अपने आसपास आने-जाने तथा उठने-बैठने वाले लोगों के स्केच को बनाता था। इसमें घूँघट ओढ़े मेहतरानी, पेंचवाली पगड़ी पहने तथा गेहूँ की बोरी उठाने वाला मज़दूर, सिज़दे के निशान व दाढ़ी से युक्त पठान तथा बकरी के बच्चे का स्केच बनाया करता था। अपनी पहली ऑयल पेंटिंग भी उसने दुकान पर रहकर ही बनायी थी। उसने एक फ़िल्म सिंहगढ़ से प्रेरित होकर अपनी किताबें बेचीं और आयल पेंटिंग करना आरंभ कर दिया। इसी फिल्म ने उसे ऑयल पेंटिग के लिए प्रेरित किया।
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दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार
Explanation:
" 1) मक़बूल साहब एक कलाकार थे, वे दुकान पर बैठे थे, लेकिन उन्होंने अपना सारा समय पेंटिग और स्केच बनाने में लगाया। वह अपने सभी खाते को मुंह से याद करता है। उन्होंने अपने पास आने वाली घटनाओं से प्रेरणा लेकर अपने 20 स्केच पूरे किए हैं।
2) इस तरह से उसने सभी लोगों के पास खड़े होने और बैठने के लिए रेखाचित्र तैयार किए हैं।
३) उसने बकरी के बच्चे को खींचा, मेहत रानी ने ओडनी, राजसी वस्त्र, पगड़ी वाला अदमी आदि पहना।
4) उन्होंने ""सिंहगढ़"" फिल्म देखी है और इसने उन्हें अपना पहला तेल चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया।"