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बच्चा मैथ्स में कमजोर और साइंस में तेज है, यह तो आपको पता है। पर, क्या हाल के दिनों में आप इस बात में भी रुचि लेने लगी हैं कि उसे कौन-सा खेल खेलना सबसे ज्यादा पसंद है? अगर आप भी उन पेरेंट्स की जमात में शामिल हैं जो अपने बच्चे के स्पोर्टी होने पर भी, उसके पढ़ाई में अच्छा होने जितना ही जोर देती हैं, तो आपको कुछ बातों को ध्यान में रखना होगा। बता रही हैं शाश्वती
जीतना ही सब कुछ नहीं
आपके बच्चे को बहुत अच्छा लगेगा, जब आप स्पोर्ट्स डे के दिन उसके स्कूल जाकर खेलते वक्त उसका हौसला बढ़ाएंगी। परयहां आपको थोड़ी सतर्कता बरतने की जरूरत है। वह जीते, इस बात पर जोर देने की जगह अपने बच्चे को बातों ही बातों में खेल खेलने, उस खेल के गुर सीखने और खेल का मजा लेना सिखाएं। स्टैंड में खड़ाकर होकर चिल्लाने या उसे जीतने के लिए बार-बार कहना, खेल का पूरा मजा खराब कर सकता है। साथ ही, यह भी संभव है कि हारने के डर से आपका बच्चा अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे ही न पाए। उस पर बेहतर प्रदर्शन के लिए दबाव न डालें। बेहतर होगा कि आप आलोचना और तारीफ के बीच संतुलन बनाकर चलें। खेल को बच्चे की जिंदगी में कुछ नया सीखने का जरिया बनाकर ही रखें।
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खेल में जोर-जबर्दस्ती नहीं
आप बैडमिंटन चैंपियन रही हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आपकी बेटी को भी बैडमिंटन खेलना पसंद ही हो। बच्चे को उसकी पसंद का खेल चुनने दें और उस खेल में आगे बढ़ने दें। कई बार जोर-जबर्दस्ती करने का नकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकता है। संभव है कि आपके बच्चे को खेल में ही कोई रुचि न रहे। बच्चे को वही चीजें करने दें, जिसमें उसकी रुचि हो। अगर ऐसा नहीं होगा तो बच्चे की जिंदगी का एक अनोखा हिस्सा अधूरा रह जाएगा।