Hindi, asked by ghoshsujal457, 7 months ago

ठाकुरबारी के जैसी संस्थाओं का ग्रामीण समाज के प्रति कर्तव्य और भूमिका के महत्व पर प्रकाश डालिए |​

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Answered by iamsuk1986
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Answer:परिचय

सहकारिता आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य कृषकों, ग्रामीण कारीगरों, भूमिहीन मजदूरों एवं समुदाय के कमजोर तथा पिछड़े वर्गों (न्यन आय वाले व्यक्तियों, अर्ध्द रोजगार तथा बेरोजगार) को रोजगार, साख तथा उपयुक्त प्रौधोगिकी प्रदान कर एक अच्छा उत्पादक बनाना है। लेकिन ग्रामीण विकास का लक्ष्य न केवल उत्पादक बढ़ाना है अपितु सभी वर्गों को पूर्ण रोजगार तथा उनमें विकास प्रक्रिया का न्यायसंगत आबंटन करना है। भारत जैसे विकासशील देश में जहां मानव शक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्रोत है और जिसका एक भारी अंश समाज का कमजोर वर्ग है, ग्रामीण विकास किसी भी आर्थिक विकास की सार्थक प्रक्रिया के लिए व्यापक महत्व का होता है।

सहकारिता एक लोकतान्त्रिक आन्दोलन है जो मात्र अपने सदस्यों द्वारा प्रदर्शित गतिशीलता और निर्देश केवल एक सुयोग्य नेतृत्व में ही कारगर हो सकता है जिसके अभाव में आन्दोलन समस्त उपलब्धियों तथा असफलताओं पर उसके नेतृत्व के स्वरूप और किस्म की छाप होती है जो बदले में आन्दोलन के सामान्य जन का प्रतिबिम्ब होती है।

सहकारिता का विचार

सहकारिता का विचार हमारे देश में आज से लगभग १०० वर्ष पूर्व अपनाया गया तथा महसूस किया गया था कि इसके द्वारा अनेक ग्रामीण तथा शहरी समस्याओं को हल किया जा सकेगा।  देश को स्वतंत्र हुए ५७ वर्ष हो चुके हैं, परन्तु सहकारिता के संबंध में हमारी उपलब्धियां केवल आलोचनाओं एवं बुराइयों तक ही सीमित रह गयी हैं, जबकि लक्ष्य इसके विपरीत था।  आखिर ऐसी कौन सी बात है जिससे हमें यह प्रतिफल दिखाई दे रहा है।  सन १९०४ में सर्वप्रथम यह विचार अपनाया गया।  उस समय देश परतंत्र था।  अत: विदेशी शासकों नए अपने हितों को ध्यान में रखकर इसे ज्यादा पनपने नहीं दिया।  परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ती के बाद हमारे देशवासियों को ही यह कार्य-भार सौंपा गया।  फिर भी अभी तक अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सके हैं।  अत्: इस पर गम्भीरता से विचार करने कि आवश्यकता है।  सर्वप्रथम तो यह तय करना होगा कि सहकारिता को वास्तविक रूप से हम ग्रामीण जीवन में उतारना चाहते हैं या घोषणा पत्रों तथा सरकारी एवं सहकारी दिखावे के रूप में इसे कार्यालयों तक ही सीमित रखना चाहते हैं।  वास्तव में सहकारिता कोई सैधांतिक बात नहीं है, बल्कि इसका गहरा संबंध तो सामान्य व्यक्ति कि भावना से है जहां निश्चित रूप से यह अपने उद्देश्यों में सफल हो सकती है।

हमारे देश के सर्वागीण विकास कि दो प्रमुख धाराएँ हैं –

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